Wednesday, August 5, 2020

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है।

एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई लेकिन विदेश जाकर फेमस हो गई। इस झटपल हल करने वाले दिमाग की वजह से उसे ह्यूमन कंप्यूटर कहा जाना लगा। ये कहानी है महान गणितज्ञ शकुंतला देवी की। इसी नाम से ये मूवी भी है। कहानी सिर्फ इतनी-सी होती तो अच्छा रहता लेकिन ये इससे बढ़कर है। ये कहानी है एक लड़की की जो अपनी मां जैसी नहीं बनना चाहती क्योंकि वो अपने पति के सामने कुछ नहीं बोलती और जब उसकी बेटी होती है तो वो उसके जैसी नहीं बनना चाहती। कुल मिलाकर ये कहानी महान गणितज्ञ शकुंतला देवी की नहीं मां शकुंतला और अनुपमा की है।


ये वैसी बायोपिक नहीं है जैसी हम अब तक देखते आए हैं। इसमें न कहीं कोई संघर्ष है और न ही कोई बहुत बड़ा दुख है। एक जीनियस लड़की है जिसे नहीं पता कि वो इन मुश्किल सवालों को कैसे हल कर लेती है? शकुंतला देवी के बारे मंे हमने सामान्य ज्ञान की किताब में ही पढ़ा है। इससे ज्यादा हम उनके बारे में जानते नहीं है। ऐसे में मूवी इस प्रकार की बननी चाहिए थी जो शकुंतला देवी की पूरी लाइफ को बता सके। अगर ये मूवी महान गणितज्ञ शकुंतला देवी पर बेस्ड न होती और किसी मां-बेटी के रिश्ते पर होती तब तो इसको अच्छा कहा जा सकता था। लेकिन इस मूवी को जिस लिए देखा गया, उसमें निराश करती है ये मूवी।

कहानी


शकुंतला देवी एक दिन खेलते-खेलते एक मुश्किल सवाल हल कर देती। उसके पिता को अपने बेटी के इस टैलेंट के बारे में पता चलता है तो वो मैथ्स शो करवाने लगते हैं। जो भी पैसे आते उससे घर चलता। ऐसे ही एक दिन वो विदेश पहुंच जाती है और वहां भी यही मैथ्स शो करने लगती है। वहीं उसे एक लड़के से प्यार हो जाता है और कलकत्ता लौट आती है। कुछ सालों तक वो अपने गणित से दूर रहती है और फिर से एक दिन अपने गणित के लिए परिवार से दूर चली जाती है। जब उसे लगता है कि उसकी बेटी उसे कम और पिता को ज्यादा प्यार करती है। तो उसे अपने साथ शोज में ले जाने लगती है।  


मां-बेटी साथ तो रहते हैं लेकिन बेटी मां से प्यार नहीं करती। वो उसे हमेशा अपने साथ ही रखना चाहती है जबकि अनुपमा ऐसा नहीं चाहती। उसके बाद क्या होता है? बेटी-मां से दूर चली जाती है या वो उसके साथ ही रहती है? इन सारे बातों को जानने के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। लेकिन फिर भी ये कई बातें जो फिल्म की कमजोरी दिखाती है। सबसे पहले तो मूवी फोकस नहीं। एक गणितज्ञ पर मूवी बन रही है तो मूवी उसी पर होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं है।

मूवी में दिखाया गया है कि शकुंतला देवी बेफ्रिक और जिंदादिल हैं। जो अपनी खुशी और सपने के लिए कुछ भी कर सकती हैं। वो कहती मूवी में कहती भी है औरत वही करना चाहिए जो उसका मन करे। लेकिन जब उसकी बेटी की बात आती है तो वो उसे उसका मन का नहीं करने देती। वो उसे अपने साथ ही रखना चाहती। कई जगह लगता है कि शकुंतला देवी का ये बेफ्रिकपन अच्छा है लेकिन कई बार ये बहुत बेकार लगता है। पूरी मूवी में बहुत कम पल या सीन हैं जिनको कहा जा सके कि ये बहुत अच्छे हैं। आखिरी के जो सीन हैं वो मुझे बहुत अच्छे लगे। आप जब देखेंगे तो शायद इमोशनल भी कर दें।

किरदार


शकुंतला देवी के किरदार में हैं विद्या बालन। विद्या बालन दिखती अच्छी हैं, एक्टिंग भी अच्छी है लेकिन जिस प्रकार का ये रोल था वैसी अदाकारी डायरेयक्टर करवा नहीं सके। शकुंतला देवी की बेटी का रोल निभाया है, सान्या मल्होत्रा ने। साल्या मल्होत्रा कहीं बहुत सही लगती हैं तो कहीं कमजोर दिखाई पड़ती हैं। विद्या बालन के आगे वो कमतर ही नजर आती हैं। इसके अलावा अमित साध भी सही लगते हैं। जिशु सेनगुप्ता काफी प्रभाव छोड़ते हैं। 


मूवी के डायरेक्टर हैं अनु मेनन। स्क्रीनप्ले को लिखा है अनु मेनन और नयनिका महतानी ने। कहानी कमजोर है। अनु मेनन को इसके लिए और मेहनत करने की जरूरत है। अगर मूवी किसी प्रकार से अच्छी कही जाए तो एक महिला को कैसा होना चाहिए? बेफिक्र, घुमक्कड़ और जिंदादिल। सबसे जरूरी बात जरूरी नहीं है कि औरतों को पुरूषों की जरूरत हो। वो अकेले भी रह सकती हैं और जिंदगी बहुत अच्छे से जी सकती हैं। अगर आपने अब तक ये मूवी नहीं देखी है तो अमेजन प्राइम पर 31 जुलाई 2020 को रिलीज हुई है, देख डालिए।

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है। एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई ...