जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी पर बहुत कुछ लिखा गया है, बहुत कुछ कहा गया है। चाहे वो किताबों के रूप में हों या फिर वो खत हों जो नेहरू ने इंदिरा गांधी को लिखे थे। सब यही कहते हैं कि इंदिरा गांधी अपने पिता को आदर्श मानती हैं। लेकिन इंदिरा गांधी के आखिरी वक्त में उनके बिस्तर के पास कमला नेहरू की तस्वीर लगी रहती थी। वे कमला नेहरू को याद करती थीं। उसकी वजह भी है कमला नेहरू ने इंदिरा गांधी को दबाव में रहना सिखाया था। जो बाद मे उन्हें काम भी आया जब सिंडीकेट उनको प्रधानमंत्री के पद से हटाने की कोशिश कर रहा था।
कमला नेहरू एक शुद्ध कश्मीरी ब्राम्हण महिला। जिनकी परवरिश दिल्ली के माहौल में हुई थी। शादी के बाद वे ऐसे परिवार में चली गईं। जहां का माहौल आधुनिक पश्चिमी और भाषा अंग्रेजी थी। जहां खाना चम्मचों और छुरियों से खाया जाता था। जो परिवार देश की आजादी और राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने वाला था। इसके बावजूद उन्होंने अपना घरेलूपन नहीं छोड़ा था। इसलिये उनको अक्सर अपमानित और अनदेखा किया जाता था। जो सबसे ज्यादा जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी करती थीं।
मां-बेटी
वैसा ही कुछ विजयलक्ष्मी ने इंदिरा गांधी के साथ भी किया। जिसका बदला उन्होंने बाद में विजयलक्ष्मी से लिया था। इसी अपमान में घिरने के कारण कमला नेहरू बीमार पड़ गईं। इंदिरा को अपनी मां की इस स्थिति देखकर बड़ा दुख होता था। इंदिरा गांधी ने एक बार अपनी मां के बारे में जवाहर लाल नेहरू को लिखा भी था।
‘‘आपको पता भी है कि आपके पीछे से घर में क्या होता है। आपको पता है कि जब मम्मी की हालत बहुत खराब थी तो घर में तमाम लोग मौजूद थे। मगर उनमें से कोई भी उनका हाल पूछने या कुछ देर बैठने को नहीं फटका और उनको जब तकलीफ हो रही थी तो किसी ने उनकी मदद नहीं की। मम्मी को अकेले छोड़ना खतरे से खाली नहीं है।’’
इसके बाद भी जवाहर लाल नेहरू ने कुछ नहीं किया। उनको वो विद्रोह बाद में फिरोज गांधी से विवाह को लेकर और राजनैतिक फैसलों को लेकर फूटा। उन्होंने कभी जवाहर लाल नेहरू को अपनी मां के लिये अपनी मां के लिये कभी माफ नहीं किया। इंदिरा गांधी ने बाद के सालों में बताया- मैंने उनके दिल पर चोट लगते देखी थी और मैं अपने साथ वैसा नहीं होने देने के लिये उद्धत थी। मैं, उन्हें बहुत शिद्धित से प्यार करती थी और मुझे जब लगा कि उनके साथ अन्याय हो रहा है। तो मैं उनकी तरफ से खड़ी हुई और लोगों से डटकर लोहा लिया।’ इंदिरा गांधी वैसा तो नेहरू जैसी थीं लेकिन विपत्ति के समय में अपनी मां जैसी हो जाती थीं। वे अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेने के लिये शांति से तैयार होने लगतीं।
मां की रक्षक इंदिरा
इंदिरा गांधी अपने पिता की शार्गिद थी तो अपनी मां की रक्षक बनीं। कमला नेहरू का स्वास्थ्य 1924 में ज्यादा ही खराब हो गया। उसी समय उनका गर्भपात हुआ और दो दिन बाद उनके बेटे की मौत हो गई। जिससे वे और टूट गईं। उन्हें तब पता चला कि उनको टी.बी. है। जो उस समय मौत की बड़ी वजह मानी जाती थी। कमला नेहरू ने तब जवाहर लाल नेहरू के मित्र सैयद महमूद को लिखा ‘मैं सब पर बोझ बन गई हूं।’
कमला नेहरू के इलाज के लिये 1926 में जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी स्विट्जरलैंड गये। उस यात्रा के समय इंदिरा, कमला नेहरू के साथ ही रहतीं। तब जवाहर लाल नेहरू ने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को लिखा- ‘ मैंने देखा कि इंदु ने कमला को बार-बार चूमा। इस हरकत को रोकना चाहिए। संभव हो तो उन्हें एक-दूसरे के गले लगने से भी रोकना चाहिये, पसीने तक में बीमारी के विषाणु होते हैं।’ इसके बाद इंदिरा को कमला से दूर कर दिया गया। उनको ऐसी जगह ठहराया गया जो उनके घर से दो घंटे की दूरी पर था। हालांकि उस समय पिता-पिता के रिश्ते अच्छे हुये थे। दोनो साथ में वक्त बिताने लग गये थे। कमला नेहरू का स्वास्थ्य अच्छा होने पर सभी लोग 1927 में वापस भारत लौट आये।
सत्याग्रही कमला
1928 में जहां साइमन कमीशन का विरोध हो रहा था। वहीं कमला नेहरू ने एक बार फिर गर्भपात का दर्द झेला। इसके बाद वे और अकेलेपन और दुख की खाई में चली गईं। 1930 में नमक कानून के विरोध में दांडी यात्रा का ऐलान किया। देश भर में जगह-जगह आंदोलन हुये। तब इलाहाबाद में अपना बिस्तर छोड़कर इस आंदोलन का नेतृत्व करने लगीं। उन्होंने इलाहाबाद में अंग्रेज संचालित क्रिश्चियन स्कूल के सामने धरना दिया। तब कमला नेहरू उस धूप के कारण बेहोश हो गई। तब उनकी सहायता उस लड़के ने की जो आगे चलकर नेहरू परिवार का दामाद बनने वाला था। जिसके लिये इंदिरा गांधी अपने पिता से बगावत करने वाली थीं।
1931 में जब नेहरू जेल में थे। तब कमला नेहरू को भी गिरफ्तार कर लिया गया। ये इंदिरा की जीत थी। इससे कमला नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन की एक पहचान बन गईं। इसके बाद वे तेजतर्रार आंदोलनकारी बन गईं। अब हर कोई उनकी इज्जत करने लगा। इस पर इंदिरा गांधी खुश होते हुये लिखती हैं- ‘लोग मेरे दादाजी और पिताजी को तो जानते हैं। मगर और भी अधिक महत्वपूर्ण भाग मेरी मां ने अदा किया था। मेरे पिता ने जब गांधीजी का साथ देने का मन बनाया तो उन्हें समूचे परिवार का विरोध झेलना पड़ा था। सिर्फ मेरी मां के साहसिक और लगातार समर्थन के बूते ही वे इतना बड़ा फैसला कर पाये। जिसने भारत के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी।’ कमला नेहरू ने जेल से अपनी बेटी को खत लिखा- ‘मैं बैरक के बाहर जब भी टहलने के लिये निकलती हूं तो मुझे तुम्हारा ख्याल आता है। मैं जब रिहा हो जाउंगी तो हम टहलने के लिये साथ-साथ बाहर जायेंगे। हालांकि वो मौका 6 महीने बाद आयेगा लेकिन 6 महीने बीतने का मुझे या तुम्हें पता भी नहीं चलेगा’
28 फरवरी 1931 को कमला नेहरू का निधन हो गया। उस समय इंदिरा गांधी उस समय शांति निकेतन में थीं। इंदिरा गांधी का मानना था कि उनकी मां ही थीं जिनकी बराबरी उनके पिता कभी नहीं कर पाये। इंदिरा कहती थी कि मैं असाधारण पिता और विलक्षण मां की बेटी हूं।
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