महात्मा गांधी, नेहरू परिवार के बड़े करीब थे। उनके सबसे प्रिय शिष्य नेहरू परिवार का बेटा था। वो बेटा जो विलायत और पश्चिमी सभ्यता का हिमायती था। जो आगे चलकर देश का नेतृत्व करने वाला था, जो आगे चलकर अपने बापू की मौत की खबर देने वाला था। महात्मा गांधी, नेहरू परिवार के कितने करीब थे। इस बात से पता चलता है कि आनंद भवन में महात्मा गांधी का भी एक कमरा था। वे अक्सर इलाहाबाद आते तो वहीं रूकते और बैठकों का दौर चलता। महात्मा गांधी नेहरू के लिये आदर्श थे और उनकी बेटी इंदिरा भी गांधी को देखकर ही बड़ी हो रही थी।
इंदिरा गांधी को जवाहर लाल नेहरू ने पढ़ने के लिये विदेश भेज दिया। वहां उनकी एक लड़के से दोस्ती हुई, फिरोज गांधी। इंदिरा गांधी ने ऑक्सफोर्ड काॅलेज में एडमिशन ले लिया। इसलिये नहीं कि उनके पिता ने कहा था बल्कि वे उस शख्स के साथ रहना चाहती थी। जो उनके मां के बड़े करीब था। इंदिरा फिरोज को तब तक अपना मित्र की माना करती थीं। जब वे फिरोज के साथ समय बिताने लगीं तो दोस्ती प्यार में बदल गई। वो प्यार जो आगे जाकर पिता-पुत्री के बीच विरोध के रूप में सामने आने वाला था।
फिरोज ने जब पहली बार इंदिरा गांधी से शादी का प्रस्ताव रखा। तब वे सिर्फ 16 साल की थीं। तब इंदिरा की मां कमला नेहरू ने मना कर दिया था। कमला का मानना था कि उनकी बेटी अभी बहुत छोटी है। 1939 में इंदिरा गांधी दोबारा लंदन गईं और फिरोज गांधी के कमरे केे पास ही अपना कमरा ले लिया। उसके 2 साल पहले ही फिरोज और इंदिरा गुपचुप तरीके से सगाई कर चुके थे। उस समय के बारे में पीएन हक्सर बाद में लिखते हैं- ‘ वे फिरोज और इंदिरा के लिये खाना बनाते थे। वे फिरोज के साथ खुश थीं। दोनों छोटे से कमरे में समय बिताते थे।’
इंदिरा और फिरोज 1941 में डरबन होते हुये जहाज से भारत आये। इंदिरा सबसे पहले महात्मा गांधी से मिलने गईं। गांधी के आश्रम में वे सिल्क की साड़ी और लिपिस्टिक लगा कर गईं। जिसे महात्मा गांधी ने धोने को कहा और खादी की साड़ी पहनने को कहा। ये बात सुनकर इंदिरा गांधी का आश्रम से मोह भंग हो गया। उन्होंने महात्मा गांधी के आश्रम को गांधीवादी आडंबर का नाम दिया था। उन्हें लगता था कि बापू के पास देश के भविष्य का कोई खाका नहीं है।
जवाहर लाल नेहरू फिरोज-इंदिरा के इस संबंध से खुश नहीं थे। इसलिये नहीं क्योंकि उनका धर्म अलग था। बल्कि उनका मानना था कि फिरोज और इंदिरा दोनों अलग सोच के हैं। नेहरू परिवार जिस सोच और पृष्ठभूमि में था, फिरोज उस दुनिया से अलग थे। जवाहर लाल नेहरू अपनी खानदानी इज्जत के लिये परेशान थे। उन्होंने तब इंदिरा गांधी को लिखा- ‘खराब स्वास्थ्य के बावजूद तुम्हारा यूरोप से वापस आना और अचानक शादी करना बेहद नासमझी की बात है।’
पिता-पुत्री के संबंध जब खराब होने लगे। तब महात्मा गांधी को बीच में आना पड़ा। उन्हांेने जवाहर लाल नेहरू को समझाया- ‘फिरोज ने कमला नेहरू की बीमारी में उनकी सहायता की थी। वह उनके लिये पुत्र के समान था। यूरोप में इंदिरा की बीमारी के दौरान भी उसने मदद की थी। उन दोनों के बीच स्वभाविकता निकटता हो गई थी। उनको विवाह की स्वीकार्यता न देना निर्दयता होगी।’
इसके बाद जवाहर लाल नेहरू मान गये और 26 मार्च 1942 को आनंद भवन में ही उनका विवाह हुआ। बाद में इंदिरा गांधी ने कहा- मैंने इस शादी को करके इस परिवार की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ा था। मेरी शादी के खिलाफ हर कोई था। लेकिन मेरे लिये ये जीत स्वतंत्रता संघर्ष के बराबर थी। लेकिन जल्दी ही ये दंपत्ति उदासी में आने वाले थे और वजह इंदिरा गांधी के पापू को बनना था।
इंदिरा गांधी को जवाहर लाल नेहरू ने पढ़ने के लिये विदेश भेज दिया। वहां उनकी एक लड़के से दोस्ती हुई, फिरोज गांधी। इंदिरा गांधी ने ऑक्सफोर्ड काॅलेज में एडमिशन ले लिया। इसलिये नहीं कि उनके पिता ने कहा था बल्कि वे उस शख्स के साथ रहना चाहती थी। जो उनके मां के बड़े करीब था। इंदिरा फिरोज को तब तक अपना मित्र की माना करती थीं। जब वे फिरोज के साथ समय बिताने लगीं तो दोस्ती प्यार में बदल गई। वो प्यार जो आगे जाकर पिता-पुत्री के बीच विरोध के रूप में सामने आने वाला था।
फिरोज-इंदिरा
फिरोज ने जब पहली बार इंदिरा गांधी से शादी का प्रस्ताव रखा। तब वे सिर्फ 16 साल की थीं। तब इंदिरा की मां कमला नेहरू ने मना कर दिया था। कमला का मानना था कि उनकी बेटी अभी बहुत छोटी है। 1939 में इंदिरा गांधी दोबारा लंदन गईं और फिरोज गांधी के कमरे केे पास ही अपना कमरा ले लिया। उसके 2 साल पहले ही फिरोज और इंदिरा गुपचुप तरीके से सगाई कर चुके थे। उस समय के बारे में पीएन हक्सर बाद में लिखते हैं- ‘ वे फिरोज और इंदिरा के लिये खाना बनाते थे। वे फिरोज के साथ खुश थीं। दोनों छोटे से कमरे में समय बिताते थे।’
इंदिरा और फिरोज 1941 में डरबन होते हुये जहाज से भारत आये। इंदिरा सबसे पहले महात्मा गांधी से मिलने गईं। गांधी के आश्रम में वे सिल्क की साड़ी और लिपिस्टिक लगा कर गईं। जिसे महात्मा गांधी ने धोने को कहा और खादी की साड़ी पहनने को कहा। ये बात सुनकर इंदिरा गांधी का आश्रम से मोह भंग हो गया। उन्होंने महात्मा गांधी के आश्रम को गांधीवादी आडंबर का नाम दिया था। उन्हें लगता था कि बापू के पास देश के भविष्य का कोई खाका नहीं है।
नेहरू का विरोध
जवाहर लाल नेहरू फिरोज-इंदिरा के इस संबंध से खुश नहीं थे। इसलिये नहीं क्योंकि उनका धर्म अलग था। बल्कि उनका मानना था कि फिरोज और इंदिरा दोनों अलग सोच के हैं। नेहरू परिवार जिस सोच और पृष्ठभूमि में था, फिरोज उस दुनिया से अलग थे। जवाहर लाल नेहरू अपनी खानदानी इज्जत के लिये परेशान थे। उन्होंने तब इंदिरा गांधी को लिखा- ‘खराब स्वास्थ्य के बावजूद तुम्हारा यूरोप से वापस आना और अचानक शादी करना बेहद नासमझी की बात है।’
पिता-पुत्री के संबंध जब खराब होने लगे। तब महात्मा गांधी को बीच में आना पड़ा। उन्हांेने जवाहर लाल नेहरू को समझाया- ‘फिरोज ने कमला नेहरू की बीमारी में उनकी सहायता की थी। वह उनके लिये पुत्र के समान था। यूरोप में इंदिरा की बीमारी के दौरान भी उसने मदद की थी। उन दोनों के बीच स्वभाविकता निकटता हो गई थी। उनको विवाह की स्वीकार्यता न देना निर्दयता होगी।’
इसके बाद जवाहर लाल नेहरू मान गये और 26 मार्च 1942 को आनंद भवन में ही उनका विवाह हुआ। बाद में इंदिरा गांधी ने कहा- मैंने इस शादी को करके इस परिवार की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ा था। मेरी शादी के खिलाफ हर कोई था। लेकिन मेरे लिये ये जीत स्वतंत्रता संघर्ष के बराबर थी। लेकिन जल्दी ही ये दंपत्ति उदासी में आने वाले थे और वजह इंदिरा गांधी के पापू को बनना था।
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