यूएन का सम्मेलन चल रहा है। विश्व भर के बड़े-बड़े नेता यहां बैठे हैं। उन्हीं के बीच बैठी है एक 16 साल की लड़की। 16 साल की ये लड़की सबको सुनती है और फिर बोलती है। वो लगभग चीखते हुए बोलती है, ‘ये सब गलत है। मुझे यहां नहीं होना चाहिए। मुझे तो इस समुन्दर के पार अपने स्कूल में होना चाहिए। आप सभी मेरे पास एक उम्मीद लेकर आए हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई? आपने अपने खोखले शब्दों के लिए मुझसे मेरे सपने और बचपन को छीन लिया है। लोग परेशान हो रहे हैं, मर रहे हैं। पूरा इको-सिस्टम खराब हो रहा है और आप विकास के नाम की जादुई कहानी सुनाने में लगे हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई? ये बातें बोल रही थी एक लड़की जिसके साथ आज लाखों लोग खड़े हैं। जिसने पूरी दुनिया को बताया कि अब समय आ गया है। जब हम खड़े हों और विरोध करें। इस 16 साल की लड़की का नाम है ग्रेटा थनबर्ग।
ग्रेटा उन सभी लोगों से ज्यादा समझदार है जो ऑफिस में बैठकर प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग पर अफसोस जताते हैं। ग्रेटा थनबर्ग को आज हर कोई जानता है, जिसे बोलने के लिए यूएन बुला रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ग्रेटा घर से निकली और हर कोई सुनने लगा। आज जब ग्रेटा कुछ बोलने के लिए खड़ी होती है तो लाखों लोग सुनते हैं। लेकिन एक साल पहले ग्रेटा अकेली थी। वो स्वीडन की गलियों में, संसद के बाहर अकेले एक बोर्ड के साथ खड़ी रही। वो हर शुक्रवार को यहां आतीं और यही काम करतीं। तब ग्रेटा का साथ न ही उनके माता-पिता दे रहे थे और न ही उनके दोस्त। उसी 15 साल की लड़की की वजह से ब्रिटेन में लाखों लोग सड़क पर उतर आए। जिस वजह से ब्रिटेन की संसद को क्लाइमेट इमरजेंसी लगानी पड़ी। ब्रिटेन ऐसा करने वाला पहला देश बन गया। तब पहली बार दुनिया ने ग्रेटा के बारे में सुना। ग्रेटा कार्बन के उत्सर्जन को कम करने की बात कहती हैं। वो सिर्फ कहती ही नहीं है, करती भी हैं। ग्रेटा हवाई जहाज से सफर नहीं करती हैं। वो सड़क और पानी के रास्ते हर जगह जाती हैं। वो अपनी उम्र के लोगों से अपील करती हैं कि अब हमें ही इस समस्या से लड़ना होगा।
वो इस सम्मेलन में करीब-करीब रोते हुए बोलती हैं, 'आप कहते हैं कि आप सुन रहे हैं। लेकिन आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितने दुखी हैं और गुस्से में हैं। क्योंकि अगर आप इस स्थिति को समझ रहे होते तो उस पर काम कर रहे होते।' पेरिस जलवायु सम्मेलन में कहा गया था कि कार्बन उत्सर्जन को आधा कम कर देंगे। ऐसा करने पर हमारी दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री हो जाएगा, जो 1991 में था। लेकिन हम इसे कम कर ही नहीं पा रहे हैं। सब भाषण दे रहे हैं लेकिन उसको कम कैसे किया जाए इस पर कोई प्लान नहीं बन रहे है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि अगर अब तापमान कम नहीं किया गया तो 2100 में दुनिया भर के बड़े शहर जल मग्न हो जाएंगे। जिसमें सिडनी, मैक्सिको और लॉस एंजिल्स जैसे शहर शामिल हैं। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के आधे से ज्यादा भाग डूब चुका है। इसी वजह से इंडोनेशिया ने अपनी राजधानी बदलने की घोषणा कर दी है।
ग्रेटा थनबर्ग |
ग्रेटा भावुक होते हुए कहती हैं, आप माने या न माने युवाओं में बदलाव आ रहा है, लोग जाग रहे हैं। वो सभी समझते हैं कि आप लोग कुछ नहीं कर रहे हैं। अगर अब आपने कुछ नहीं किया तो हम लोग आपको कभी माफ नहीं करेंगे। ग्रेटा ने एक साल पहले जो काम खुद किया था उसको करने का हर किसी से कहती हैं। लोगों को अब तख्तियां लेकर सड़कों पर निकल जाना चाहिए। ग्रेटा ने इसके लिए एक मुहिम भी चलाई है, 'फ्राईडे फॉर क्लाइमेट चेंज'। आपको रोज-रोज सड़कों पर उतरने की जरूरत नहीं है, बस हफ्ते के शुक्रवार को सरकार को याद दिलाना है। जब 21 सितंबर 2019 को ये मुहिम शुरू हुई तो ये एक आंदोलन बन गया। हर बड़े शहर में हजारों लोग जुटे। सिडनी और मेलबर्न में तो 80 हजार लोग एक जगह जुटे। दिल्ली, जिसे चलता हुआ शहर कहते हैं। जहां किसी को किसी से लेना-देना नहीं होता है। लेकिन उस दिन हजारों लोग जुटे और सड़क पर निकल पड़े। मैं खुद उस मार्च में शामिल था, उस दिन मुझे लगा कि भीड़ अच्छा काम भी कर सकते हैं। चारों ओर नारे गूंज रहे थे, हमें चाहिए आजादी, सूखे से आजादी, प्रदूषण से आजादी, क्लाइमेट चेंज से आजादी। इस मार्च का सबसे खूबसूरत दृश्य था, दो छोटे-छोटे बच्चे। जो शायद क्लाइमेट चेंज के बारे में सही से समझते भी न हो लेकिन वो इस मुहिम में साथ खड़े थे।
कुछ लोग समझते होंगे कि इससे क्या ही होगा? हो सकता है कि इससे कुछ न हो, हो सकता है यहां आने वाले बहुत से लोग खुद प्रदूषण करते होंगे। लेकिन ये भी सच है कि जब तक लोग जुटते नहीं, सरकार कुछ करती नहीं। जब यहां लोग आएंगे तो कुछ तो पर्यावरण के प्रति, इस समय की स्थिति के बारे में जरूर समझेंगे। तब वो शायद अगली बार ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो पर्यावरण के लिए अच्छा न हो। ग्रेटा की इसी मुहिम की वजह से पूरी दुनिया में पर्यावरण की बहस चल पड़ी है। सब विकास के नाम पर हो रहा है लेकिन ये क्यों नहीं समझते कि ये पर्यावरण भी विकास है। इसे बचाना जरूरी है, बेहद जरूरी।
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