हम सभी का मानना है कि प्रकृति के बीच रहने के कई फायदे होते हैं। तन और मन हमेशा तरोताजा रहते हैं, ऐसा मैं नहीं विशेषज्ञ कह रहे हैं। लेकिन हमारा देश न जाने किस दिशा में आगे बढ़ रहा है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर्यावरण को बचाने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुंबई की आरे काॅलोनी में पेड़ काटे जा रहे हैं। कहा जाता है कि एक पेड़, 100 बेटों के बराबर होता है। मतलब बेटे जितना नहीं करते, उससे ज्यादा फायदा इन पेड़ों से होता है। कहा जाता है कि एक पेड़ एक साल में करीब 117 किलोग्राम ऑक्सीजन देता है और करीब 20 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। 4 डिग्री तापमान को नियंत्रण करता है और कई खतरनाक तत्वों को सोखता है। इसके अलावा हमें इन पेड़ों से चारा मिलता है, फल मिलते है और लकड़िया भी मिलती हैं। से सब बताते हैं कि पेड़ हमारे लिए कितने फायदेमंद हैं। ये अच्छे से समझ लेना चाहिए कि अगर हम पेड़ों को काट रहे हैं तो खुद के जीवन को कम कर रहे हैं।
बिना पेड़ों के जीवन संभव नहीं है कि लेकिन अपने ऑफिस मेंं मजे से बैठे सरकार के मंत्रियों को ये बात कभी समझ नहीं आएगी। तभी तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पेड़ों के संरक्षण के लिए नहीं, पेड़ों के कटने के समर्थन में बयान दे रहे हैं। पेड़ों को काटने की वजह है, मुंबई मेट्रो। हर बार यही शहरीकरण और आधुनिकता के लिए हम पेड़ों को काटते जाते हैं। लेकिन मेरे ख्याल से इसे पेड़ काटना नहीं, पेड़ो की हत्या कहा जाना सही होगा। वर्ना रात के पहर में चोरों की तरह क्यों पेड़ काटे गए? हमेशा जागने वाली मुंबई शायद इस रात सो गई थी। सोचिए क्या हाल होगा? जब सरकार आपके घर को बुल्डोजर से तोड़ रही हो और आप कुछ न कर पा रहे हों, सिवाय बिलखने के। वैसा ही हाल मुंबई के आरे काॅलोनी का था।
अब सबको समझ जाना चाहिए ये नया भारत कहने वाले, पेड़ों के नहीं हैं, पर्यावरण के नहीं है। इन्हें तो बस विकास चाहिए। तभी तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर कहते हैं, जब दिल्ली में मेट्रे स्टेशन बनना था। तब 20-25 पेड़ काटे जाने थे, तब भी विरोध हुआ था। दिल्ली में 271 मेटो स्टेशन बनाए गए हैं और पेड़ों की संख्या भी बढ़ी है।’ मंत्री साहब भूल जाते हैं कि दिल्ली और मुंबई में कितना अंतर है? दिल्ली में पहले से ही बहुत पेड़ हैं और मुंबई की आरे काॅलोनी इकलौता बचा जंगल है। आप कह रहे हैं कि पेड़ काटकर हम पौधे लगायेंगे। पौधे को बड़ा पेड़ बनने में 5 साल तो लग ही जाते हैं। तब तक क्या मुंबई बिना पेड़ों की रहेगी?
मुंबई में देश के सबसे प्रबुद्ध लोग रहते हैं लेकिन इनकी बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ सोशल मीडिया और सिनेमा पर ही
मुंबई के गोरेगांव में बसी आरे काॅलोनी इस महानगर की सबसे हरी-भरी जगह है। 16 वर्ग किमी. में स्थित यह एक हरित पट्टी है। जो 1949 में दूध देने वाले पशुओं को रखने के लिए बनाई गई थी। इसके एक छोर पर संजय गांधी नेशनल पार्क है तो दूसरी ओर पवई लेक, तुलसी लेक और विहार लेक जैसी तीन बड़ी झीलें हैं। अगर इन पेड़ों को काटा गया तो जल्दी ही ये तीन बड़ी झीलें भी खत्म हो जाएंगी। जल संकट का एक बड़ी वजह पेड़ों का खत्म होना भी है। पेड़ों को काटकर पौधारोपण करना कोई समाधान नहीं है। अगर आप ऐसा कुछ करना ही चाहते हैं तो पौधों को लगाकर पेड़ बन जाने दीजिए, उसके बाद उन पुराने पेड़ों को काटिए जिनको आप काटना चाहते हैं। तब आपकी बात न्यायसंगत लगेगी।
ये सब हुआ मुंबई हाईकोर्ट के एक फैसले से। जिसमें उन्होंने कहा कि मुंबई महानगरपालिका के वृक्ष प्राधिकरण का मेट्रो-3 के लिए वृक्षों की कटाई का फैसला पूरी तरह से सही है। हाईकोर्ट ने पेड़ों की कटाई रोकने के लिए दायर जोरू बाथेना की याचिका खारिज की दी। मुंबई की मेट्रो के काम के लिए आरे काॅलोनी के 2,464 पेड़ काटे जाने हैं। फैसला आते ही शाम को पेड़ों को काटना शुरू कर दिया गया। मामला फिर भी अभी तक सुलझा नहीं था। मुंबई हाईकोर्ट ने तो फैसला सुना दिया लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। यही मामला एनजीटी में भी चल रहा है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से कब से बड़ी हो गई? पुलिस को आम लोगों की बजाय उन पेड़ काटने वालों को गिरफतार करना चाहिए।
मुझे नहीं पता कि इस मेट्रो से किन लोगों को फायदा होने वाला है। देश के सबसे पूंजीपतियों को या देश की जनता को जैसा सरकार हर योजना पर कहती है। लेकिन ऐसे विकास क्या ही फायदा जो हमारे आने वाले भविष्य को खत्म कर रहा है? हमारी मौलिकता को खत्म कर रहा है। नेता भाषणों में तो दुनिया बदलने की बात कहते हैं लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो सबसे पीछे अंगड़ाई ले रहे होते हैं। फाॅरेस्ट रिर्सोसेज आंकलन के अनुसार, 1990 और 2015 के बीच दुनिया भर में जंगल 31.6 फीसदी से घटकर 30 फीसदी पर जा पहुंचे हैं। हम दुनिया को बताते हैं कि हम हरे-भरे देश हैं लेकिन अंदर ही अंदर हम इस हरियाली को खत्म करने पर तुले हुए हैं।
पेड़ो को खत्म करके ऊंची-ऊंची इमारत बना सकते हैं, लंबी-लंबी मेट्रो बनाकर खुश हो सकते हैं। लेकिन इस विकास में एक कमी तो है, लोगों की भलाई। पेड़ सिर्फ हरियाली के लिए नहीं होते हैं, उनसे बारिश होती है, ऑक्सजीन आती है और काॅर्बनडाईआक्साइड जाती है। दुनिया भर की सरकारें विकास के नाम पर आरे काॅलोनी की तरह पेड़ों को काट रही हैं। हर साल हम 1 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर वनों को खो देते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर वापस लौटना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हमारे इसी रवैये की वजह से पेड़ हमसे दूर हो रहे हैं। अभी भी समय है हमें पर्यावरण के लिए गंभीर हो जाना चाहिए। अन्यथा भविष्य तो दूर की बात है, वर्तमान भी संकट में आ जाएगा।
विकास बनाम पर्यावरण
बिना पेड़ों के जीवन संभव नहीं है कि लेकिन अपने ऑफिस मेंं मजे से बैठे सरकार के मंत्रियों को ये बात कभी समझ नहीं आएगी। तभी तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पेड़ों के संरक्षण के लिए नहीं, पेड़ों के कटने के समर्थन में बयान दे रहे हैं। पेड़ों को काटने की वजह है, मुंबई मेट्रो। हर बार यही शहरीकरण और आधुनिकता के लिए हम पेड़ों को काटते जाते हैं। लेकिन मेरे ख्याल से इसे पेड़ काटना नहीं, पेड़ो की हत्या कहा जाना सही होगा। वर्ना रात के पहर में चोरों की तरह क्यों पेड़ काटे गए? हमेशा जागने वाली मुंबई शायद इस रात सो गई थी। सोचिए क्या हाल होगा? जब सरकार आपके घर को बुल्डोजर से तोड़ रही हो और आप कुछ न कर पा रहे हों, सिवाय बिलखने के। वैसा ही हाल मुंबई के आरे काॅलोनी का था।
अब सबको समझ जाना चाहिए ये नया भारत कहने वाले, पेड़ों के नहीं हैं, पर्यावरण के नहीं है। इन्हें तो बस विकास चाहिए। तभी तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर कहते हैं, जब दिल्ली में मेट्रे स्टेशन बनना था। तब 20-25 पेड़ काटे जाने थे, तब भी विरोध हुआ था। दिल्ली में 271 मेटो स्टेशन बनाए गए हैं और पेड़ों की संख्या भी बढ़ी है।’ मंत्री साहब भूल जाते हैं कि दिल्ली और मुंबई में कितना अंतर है? दिल्ली में पहले से ही बहुत पेड़ हैं और मुंबई की आरे काॅलोनी इकलौता बचा जंगल है। आप कह रहे हैं कि पेड़ काटकर हम पौधे लगायेंगे। पौधे को बड़ा पेड़ बनने में 5 साल तो लग ही जाते हैं। तब तक क्या मुंबई बिना पेड़ों की रहेगी?
सोशल मीडिया पर बोलती प्रबुद्धता
मुंबई में देश के सबसे प्रबुद्ध लोग रहते हैं लेकिन इनकी बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ सोशल मीडिया और सिनेमा पर ही
दिखाई देती है। वो प्रबुद्ध लोग जब रात को आराम से नींद ले रहे थे, तब आरे काॅलोनी में आरी चलाई जा रही थी। तब कुछ लोग थे जो इस कटाई का विरोध कर रहे थे। शायद इन लोगों को पता नहीं था कि ये सब विकास के लिए हो रहा था। तभी तो 38 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है और इलाके में धारा 144 लगा दी गई है। मैंने अब तक कश्मीर में हिंसा पर, 370 का एक भाग हटाने पर, दिल्ली में किसानों की रैली पर, जाट आरक्षण पर धारा 144 लगते देखी थी। मैं पहली बार देख रहा हूं कि पेड़ों को काटने के लिए धारा 144 लग रही है।
मुंबई के गोरेगांव में बसी आरे काॅलोनी इस महानगर की सबसे हरी-भरी जगह है। 16 वर्ग किमी. में स्थित यह एक हरित पट्टी है। जो 1949 में दूध देने वाले पशुओं को रखने के लिए बनाई गई थी। इसके एक छोर पर संजय गांधी नेशनल पार्क है तो दूसरी ओर पवई लेक, तुलसी लेक और विहार लेक जैसी तीन बड़ी झीलें हैं। अगर इन पेड़ों को काटा गया तो जल्दी ही ये तीन बड़ी झीलें भी खत्म हो जाएंगी। जल संकट का एक बड़ी वजह पेड़ों का खत्म होना भी है। पेड़ों को काटकर पौधारोपण करना कोई समाधान नहीं है। अगर आप ऐसा कुछ करना ही चाहते हैं तो पौधों को लगाकर पेड़ बन जाने दीजिए, उसके बाद उन पुराने पेड़ों को काटिए जिनको आप काटना चाहते हैं। तब आपकी बात न्यायसंगत लगेगी।
हाई कोर्ट बड़ा या सुप्रीम कोर्ट?
ये सब हुआ मुंबई हाईकोर्ट के एक फैसले से। जिसमें उन्होंने कहा कि मुंबई महानगरपालिका के वृक्ष प्राधिकरण का मेट्रो-3 के लिए वृक्षों की कटाई का फैसला पूरी तरह से सही है। हाईकोर्ट ने पेड़ों की कटाई रोकने के लिए दायर जोरू बाथेना की याचिका खारिज की दी। मुंबई की मेट्रो के काम के लिए आरे काॅलोनी के 2,464 पेड़ काटे जाने हैं। फैसला आते ही शाम को पेड़ों को काटना शुरू कर दिया गया। मामला फिर भी अभी तक सुलझा नहीं था। मुंबई हाईकोर्ट ने तो फैसला सुना दिया लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। यही मामला एनजीटी में भी चल रहा है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से कब से बड़ी हो गई? पुलिस को आम लोगों की बजाय उन पेड़ काटने वालों को गिरफतार करना चाहिए।
मुझे नहीं पता कि इस मेट्रो से किन लोगों को फायदा होने वाला है। देश के सबसे पूंजीपतियों को या देश की जनता को जैसा सरकार हर योजना पर कहती है। लेकिन ऐसे विकास क्या ही फायदा जो हमारे आने वाले भविष्य को खत्म कर रहा है? हमारी मौलिकता को खत्म कर रहा है। नेता भाषणों में तो दुनिया बदलने की बात कहते हैं लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो सबसे पीछे अंगड़ाई ले रहे होते हैं। फाॅरेस्ट रिर्सोसेज आंकलन के अनुसार, 1990 और 2015 के बीच दुनिया भर में जंगल 31.6 फीसदी से घटकर 30 फीसदी पर जा पहुंचे हैं। हम दुनिया को बताते हैं कि हम हरे-भरे देश हैं लेकिन अंदर ही अंदर हम इस हरियाली को खत्म करने पर तुले हुए हैं।
पेड़ो को खत्म करके ऊंची-ऊंची इमारत बना सकते हैं, लंबी-लंबी मेट्रो बनाकर खुश हो सकते हैं। लेकिन इस विकास में एक कमी तो है, लोगों की भलाई। पेड़ सिर्फ हरियाली के लिए नहीं होते हैं, उनसे बारिश होती है, ऑक्सजीन आती है और काॅर्बनडाईआक्साइड जाती है। दुनिया भर की सरकारें विकास के नाम पर आरे काॅलोनी की तरह पेड़ों को काट रही हैं। हर साल हम 1 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर वनों को खो देते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर वापस लौटना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हमारे इसी रवैये की वजह से पेड़ हमसे दूर हो रहे हैं। अभी भी समय है हमें पर्यावरण के लिए गंभीर हो जाना चाहिए। अन्यथा भविष्य तो दूर की बात है, वर्तमान भी संकट में आ जाएगा।
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