Friday, May 29, 2020

सेवन ईयर्स इन तिब्बतः जब तिब्बत वहां के लोगों का हुआ करता था, तब की कहानी है ये।

सेवन ईयर्स इन तिब्बत कहानी तो है एक शख्स की। जो अपने जिंदगी के सात साल तिब्बत में बिताता है। उस दौरान तिब्बत में क्या-क्या होता है? वो शख्स तिब्बत को कैसे देखता है? उसने इन सात सालों में क्या किया? मगर ये सिर्फ इतनी-सी कहानी नहीं है। ये कहानी है तिब्बत की खूबसूरती की, वहां के शांतिप्रिय लोगों की जो हथियार नहीं उठाते और ये कहानी है तिब्बत को कुछ और बनाने की। यही सब इस मूवी में है। ये मूवी हेनरिच हैरेर की बुक सेवन ईयर्स इन तिब्बत पर बेस्ड है। इसके अलावा ये मूवी है दो लोगों के बीच बने एक विश्वास की। 1997 में रिलीज हुई ये मूवी अब आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं।


कहानी


सेवन ईयर्स ने तिब्बत में 1939 से 1952 के बीच की कहानी है। हेनरिच हैरेर जो आस्ट्रिया से हैं वो ब्रिटिश इंडिया के नंगा पर्वत की चढ़ाई करने जा रहा है जबकि उसकी पत्नी प्रेग्नेंट हैं। वो अपने कुछ साथियों के साथ उस पहाड़ को चढ़ने जाते हैं लेकिन आखिरी बेस कैंप से तूफान की वजह से लौटना पड़ता है। वहां से उनको विश्वयुद्ध की वजह से देहरादून के ब्रिटिश कैंप में रखा जाता है। यहीं हेनरिच को पता चलता है कि उसकी वाइफ को बेटा हुआ है और वो उसे तलाक देना चाहती है। उस कैंप से कई बार भागने की कोशिश करता है मगर हर बार पकड़ा जाता है। आखिरकार अपने कुछ साथियों के साथ कैंप से निकलने में कामयाब हो जाता है। बाकी सब पकड़ जाते हैं सिवाय हेनरिच और उसके साथी के। दोनों तिब्बत जाते हैं। तिब्बत में बाहर के लोगों को आना प्रतिबंध है इसलिए दोनों को वहां नहीं आने दिया जाता।


लोगों से छुपते हुए दोनों तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंच जाते हैं। जहां 13वें दलाई लामा रहते हैं, जिनकी पूरा तिब्बत पूजा करता है। वो तिब्बत के लीडर हैं और यहां उनका ही राज चलता है। दोनों को यहां रहने की परमिशन मिल जाती है। दलाई लामा से जब हेनरिच मिलते हैं तो देखते हैं कि वो तो एक बच्चा है। वो हेनरिच से बहुत कुछ सीखना चाहता है, बहुत कुछ पूछता है। दोनों रोज मिलते हैं, बात करते हैं। वो क्या-क्या बात करते हैं, दलाई लामा क्या सीखते हैं? वो सब आपको मूवी देखने पर पता चलेगा। 1949 में चीन तिब्बत पर अटैक कर देता है। पूरा तिब्बत चीनी सैनिकों से भर जाता है।



तिब्बत के लोगों को अपना पवित्र शहर ल्हासा छोड़ना पड़ता है। मगर दलाई लामा वहीं रहते हैं। हेनरिच का क्या होता है? वो तिब्बत में और रूकता है या अपने बेटे के लिए आस्ट्रिया लौट जाता है? ये जानने के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। मूवी में तिब्बत की स्टोरी 1952 तक ही दिखाई है। ये वही दलाई लामा हैं जो अब भारत के धर्मशाला में रहते हैं। 1959 में वे चीन से भारत आए थे, तब से वे यहीं रहते हैं। इस मूवी में हिमालय को दिखाया है। पहाड़ पर चढ़ना कितना कठिन होता है ये आपको इस मूवी में देखने को मिलेगा। मगर वो नजारे बेहद खूबसूरत लगते हैं चाहे वो बर्फ से ढंके पहाड़ हों या पहाड़ से घिरा तिब्बत।

ये सुंदर दृश्य भी इस मूवी के लिए आकर्षण पैदा करते हैं। इन सबके अलावा ये मूवी तिब्बत के बारे में बताती है। वहां के कल्चर, वेश-भूषा, तौर-तरीकों के बारे में पता चलता है। उस समय का तिब्बत कैसा था? सब कुछ मूवी देखने पर कुछ-कुछ समझ में आता है। इस मूवी में सबसे अच्छा सीन वो लगता है जब दलाई लामा, हेनरिच से बात करते हैं। हेनरिच उनको कुंदन कहता, दोनों एक-दूसरे पर यकीन करते थे। जब वो आखिरी बार मिलते हैं तो वो सीन इमोशनल कर देता है। हालांकि इतना भी इमोशनल नहीं कि आप रोने लगे, बस थोड़ा बुरा लगता है।

किरदार


हेनरिच का रोल निभाया ब्रैड पिट ने। ब्रैड पिट ने इसमें कमाल का काम किया है। वो सीन में होते हैं तो किसी और को देखने का मन नहीं करता। इसके अलावा दलाई लामा का रोल में रहे जेमयांग वांगचुक। वांगचुक ने भी अच्छा काम किया है। वो बच्चे और धर्मगुरू दोनों हैं। वो कभी गंभीर बातें करते तो कभी बिल्कुल बच्चों की तरह लगते। इसी वजह से वांगचुक दलाई लामा के रूप में अच्छे दिखते हैं। इसके अलावा भारतीय अभिनेता डेनी डेनजोंगपा भी मूवी में हैं। जो मूवी में बहुत कम ही दिखाई देते हैं।


ब्रैड पिट।

मूवी का कैमरा वर्क बहुत शानदार है। जिसकी वजह से ये मूवी बेहद अच्छी लगती है। सिनेमेटौग्राफी का काम किया है राॅबर्ट फ्रेज ने। 136 मिनट की इस मूवी का स्क्रीनप्ले का काम किया है बैकी जाॅनस्टन ने और डायरेक्ट किया है जीन जैक्यूस एनौड ने। ये मूवी बताती है कि हमारी जिंदगी एक यात्रा है जिसमें हम बहुत कुछ देखते हैं। इसमें एडवेंचर, पैसन, इमोशन होता है। आप ये मूवी देखेंगे तो समझ जाएंगे मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं?

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