Thursday, May 21, 2020

ताजमहल 1989ः किस्से पुराने हैं इसलिए भी अच्छे लगते हैं बिल्कुल नोस्टाल्ज्यिा।

‘ये सुबह को गुलाबी, दिन में सफेद और रात में सुनहरा नजर आता है।’ 

ये डायलाॅग है नेटफ्लिक्स पर आई एक वेब सीरीज ‘ताजमहल 1989’ का। प्यार कैसा होना चाहिए? ये इस सीरीज में अलग-अलग कहानियों से बताने की कोशिश की है। वैसे तो इन कहानियों में दिखाया गया प्रेम अच्छा लगता है लेकिन उस समय का प्रेम कुछ आज की तरह ही दिखाया गया है जो थोड़ा फसाना है। इसके बावजूद ये वेब सीरीज देखने लायक है। अगर आप नब्बे के दशक के हैं तो ये सीरीज आपको पक्का अच्छी लगेगी।

कहानी


ताजमहल 1989 में लखनऊ विश्वविद्यालय कैंपस के इर्द-गिर्द बुनी हुई कुछ कहानियां अलग-अलग चलती हैं। इस वेब सीरीज में उस समय के समाज को दिखाने की कोशिश की गई है। जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी रहे हैं। आज जब वो दौर नहीं है तो उस समय को सिनेमा में देखना सुकून देता है। वो स्कूटर, रेडियो, रिक्शा, साईकिल और वो टेलीफोन। सब उस समय को याद दिलाते हैं, इन सबको इस वेब सीरीज में खूबसूरती से दिखाया गया है। वैसे तो ये कहानी है दो जोड़ों की। जो एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। दोनों जोड़ों ने लव मैरिज की है और वो भी इंटरकास्ट। मुसलमान लड़के ने हिन्दू से शादी की है और हिन्दू लड़के ने मुसलमान से शादी की है। इंटरकास्ट की वजह से उनके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है।


ये देखना अच्छा तो लगता है और सुखद भी। मगर 1989 में भी ऐसा हो सकता है ये मान लेना थोड़ा मुश्किल है। अख्तर बेग और सरिता एक-दूसरे से प्यार करते हैं। सरिता को शिकायत है क्योंकि वो उनके लिए समय नहीं निकालती है। सरिता एक जगह दर्शकों से कहती है, ये कब पता चलता है कि प्यार करने की उम्र निकल गई’। वहीं अख्तर बेग जो लखनऊ यूनिवर्सिटी में फिलाॅसफी के प्रोफेसर हैं और जिनको शायरी से बहुत प्यार है। अख्तर बेग के प्यार के लिए मानी हैं कि लव इज म्यूटेटिंग वायरस। ये किसी उम्र में समझ न आने वाली चीज है। वेब सीरीज मे ह्यूमर कूट-कूट के भरा पड़ा है। एक तरफ अख्तर बेग और सरिता की जोड़ी है तो दूसरी तरफ अख्तर के दोस्त सुधाकर मिश्रा और उनकी बीवी मुमताज की जोड़ी है।

सुधाकर की बीवी मुमताज कभी एक सेक्स वर्कर हुआ करती थीं, उस काम से निकाला सुधाकर ने। इसके बावजूद दोनों ने शादी नहीं की। सुधाकर, अख्तर बेग के साथ पढ़ता था और फिलाॅसफी में गोल्ड मेडलिस्ट भी था। सुधाकर अपने पिता के पुश्तैनी सिलाई की दुकान को चलाता है। कई सालों के बाद दोनों की एक मुशायरे में मुलाकात होती है। इसके बाद तो दोनों का रोज का उठना-बैठना होता है। उन दोनों की बातचीत को सुनना बहुत अच्छा लगता है। दोनों शराब पीते हुए एक-दूसरे को अपनी परेशानियां बताते हैं। उसी बातचीत में अख्तर बताता है कि सरिता उससे तलाक चाहती है और सुधाकर उसे ताजमहल घुमा ले जाने की बात करता है। अख्तर बेग तो ताजमहल ले जाता है लेकिन एक ताजमहल सुधाकर अपनी मुमताज के लिए भी बनाता है। वो इस सीरीज का सबसे खूबसूत सीन है। जब सुधाकर अपने बीवी को नए घर ले जाता है और उसके दरवाजे पर लिखता है मुमताज महल। जो मुस्कान उस समय मुमताज के चेहरे पर आती है वही इस सीन को देखने वाले दर्शक के चेहरे पर भी होगी।


इन सबके अलावा कुछ कहानियां और हैं जो साथ-साथ चलती हैं। जिसमें चुनाव है, अफेयर है, काॅलेज का प्यार और दोस्ती है। इसमें एक सीन में एक जगह डायलाॅग है, प्यार में एक मोड़ ऐसा आता है। जब आपको लगता है कि आपने इसको चुना ही क्यों? ये आज के दौर के प्यार की कहानी है या यूं कहें कि युवाओं को जब ब्रेकअप होता है तो वे यही सोचते हैं। पति-पत्नी के बीच होने वाले संवाद बहुत अच्छे हैं। चाहे वो प्यार के संवाद हो या एक-दूसरे से गुस्से और लड़ाई के। वेब सीरीज का नाम ताजमहल है तो कहानी में प्यार तो होना ही था। प्यार पर इसमें बहुत कुछ कहा गया है और दिखाया गया है। नौजवान प्यार के बारे में क्या सोचते हैं और शादीशुदा के लिए प्यार का क्या मतलब है?

किरदार


अख्तर बेग का किरदार निभाया है नीरज काबी ने। नीरज काबी को इससे पहले सेक्रेड गेम्स और हाल में आई पाताल लोक में अच्छा काम किया है। प्रोफेसर के रोल में नीरज काबी ने क्या खूब काम किया है। रोमांटिक अंदाज में बातें करने वाले इस रोल में नीरज काबी खूब फबते हैं। अख्तर बेग की पत्नी के किरदार में रहीं गीतांजलि कुलकर्णी। गीतांजलि ने भी अपना रोल बहुत अच्छे से निभाया है। सुधाकर मिश्रा के किरदार में दिखे दानिश हुसैन और मुमताज का किरदार निभाया है शीबा चड्ढा ने। लखनउ के उस समय के परिवेश को वेब सीरीज को दिखाने की कोशिश की गई है। उस समय के मुशायरे और बोलने के नवाबी अंदाज देखने को मिलता है। सफदर, हाशमी, इमरोज और गालिब का भी जिक्र आता है।


नेटफ्लिक्स पर आई ताजमहल 1989 वेब सीरीज के सात एपिसोड हैं। ताजमहल 1989 को डायरेक्ट किया है पुष्पेन्द्र नाथ मिसरा ने। लखनऊ की कहानी आकर आगरा में ताजमहल में आकर खत्म होती है। जिस प्रकार ये खत्म होती है वो थोड़ा और अच्छा हो सकता था बाकी ये वेब सीरीज देखने लायक है। वेब सीरीज का संगीत याद हो न हो लेकिन सुनने में अच्छा बहुत लगता है। अगर आप इस सीरीज को देखेंगे तो मेरे ख्याल से सुकून ही मिलेगा।

No comments:

Post a Comment

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है। एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई ...