पहले गर्मी आई तो हम पूरी दुनिया की आबोहवा की बात करने लगे। हमने देखा कि कैसे उत्तराखंड के जंगल धधक रहे थे। अखबारों में आए दिन कहा जाता रहा कि ये साल का सबसे गर्म दिन रहा। ये भी कहा गया कि इस साल की गर्मी ने 128 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। गर्मी आती है तो हमें एक और समस्या से जूझना पड़ता है पानी की समस्या से। हर बार हम बुंदेलखंड और महाराष्ट्र में सूखे की समस्या को सुनते थे। लेकिन इस बार पानी की समस्या से पूरा देश जूझा। आखिर ये सब क्यों हो रहा है? क्यों चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर जा रही हैं? क्यों जलवायु संकट का विषय हमारे अस्तित्व का विषय बन गया है?
जब आइसलैंड का पहला ग्लेशियर ओकोजुकुल खत्म हो जाए तो जलवायु परिवर्तन पर बात होनी चाहिए। जब विश्व को 20 फीसदी ऑक्सीजन देने वाला अमेजन के जंगल में आग धधकने लगे तो जलवायु संकट एक महत्वपूर्ण विषय बन जाता है। जब 14 साल की लड़की स्कूल न जाकर क्लाइमेट चेंज पर संसद के सामने धरने पर बैठ जाती है तो ये विषय जरूरी लगता है। जरा सोचिए ऐसा क्यों हो रहा है? इसकी वजह हैं, हम और हमारा विकास।
इस कथाकथित विकास की वजह से ही ये सब हो रहा है। मैं कुछ दिनों पहले ही उत्तराखंड गया था। उत्तराखंड प्राकृतिक संपदा से भरा हुआ राज्य है। इस राज्य की सबसे बड़ी समस्या है रोजगार। इसी वजह से यहां के लोग उत्तराखंड के लोग पलायन कर रहे हैं और शहरों की ओर लौट रहे हैं। सरकार इसके समाधान के लिए विकास ला रही है और अब उत्तराखंड में सड़क चौड़ीकरण का काम जोरों पर है। हरिद्वार से लेकर देवप्रयाग तक सड़क अच्छी की जा रही है और पहाड़ को तोड़ा जा रहा है। जिससे जो पहाड़ पहले खूबसूरत दिखते थे, वो अब बंजर लगते हैं। अगर यही हाल रहा तो पूरा उत्तराखंड बंजर लगने लगेगा। ये तो बस विकास एक पैमाना है। इसके अलावा उद्योग भी एक बड़ा फैक्टर है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।
पूंजीवाद विकास
भारत कृषि प्रधान देश है, आज भी देश की 60 फीसदी आबादी खेती ही करती है। शहर उद्योगों की तरफ भाग रहे हैं और गाँवों में खेती की जाती है। उद्योगों को चलाने के लिए पहले तो भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है फिर उसका जो वेस्ट मटेरियल होता है वो नदियों में जाकर गिरता है। अभी बरसात है तो दिल्ली में अभी यमुना साफ दिखेगी। कुछ दिन बाद देखना यही पवित्र और स्वच्छ यमुना काली नदी के के रूप में दिखेगी। मुझे अच्छी तरह से याद है इसी साल मई में जब पूरा देश पानी की समस्या से जूझ रहा था, उसमें गुजरात भी शामिल था।
गुजरात में पानी की कमी का हाल कुछ ऐसा था कि गावों में हर रोज पानी का टैंकर सरकार भेज रही थी। कहीं-कहीं तो पानी का टैंकर हफ्ते में एक बार जा रहा था। पानी की संकट की ही वजह से गुजरात मॉडल फेल होता दिखाई दे रहा था। गुजरात में पानी की समस्या इतनी बढ़ गई थी मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने आकर इस पर दखल दिया था। मुख्यमंत्री ने बताया था कि राज्य सरदार सरोवर डैम को छोड़ दिया जाए तो किसी भी बांध में पानी नहीं बचा है। तब उद्योगों को आदेश दिया गया था कि उनको उपयोग किया हुआ पानी दिया जाएगा। शायद यही विकास है जो एक न एक दिन ढ़र्रे पर आ ही जाता है।
जल संकट
हम समझते हैं कि जल संकट का मतलब है पानी की कमी।जल संकट सिर्फ पानी की कमी ही नहीं है, पानी की हद से ज्यादा अधिकता भी जलसंकट है। जलवायु संकट की ही वजह से ये देश सूखा और बाढ़ की ओर एक साथ बढ़ रहा है। जब बारिश नहीं हो रही थी तब देश के आधे राज्य सूखे की समस्या झेल रहे थे। चेन्नई, गुजरात, महाराष्ट्र और हैदराबाद इन सबमें शामिल थे। आपने चेन्नई की वो तस्वीर देखी ही होगी। जिसमें एक तस्वीर पिछले साल की थी, जिसमें पानी ही पानी दिख रहा थी। दूसरी तस्वीर में चेन्नई का पानी गायब हो चुका था। पानी के चारों तरफ बसा ये शहर अब पानी से जूझ रहा है।
जब बारिश हुई तो पूरा देश दो समस्याओं से घिर गया। एक बाढ़ से और दूसरी सूखे से। बिहार के कुछ जगह बाढ़ से परेशान थीं तो दूसरी तरफ उसी बिहार में सूखा भी पड़ रहा था। नर्मदा का स्तर तो इतना बढ़ चुका है कि कई गाँव के लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की सूत्रधार मेधा पाटेकर यहां के लोगों के लिए अनशन पर बैठ गईं। ऐसे ही कई राज्य बाढ़ से जूझ रहे हैं। वहीं बारिश के बाद भी पानी की कमी बनी हुई है। सबने बाढ़ पर ध्यान दिया लेकिन उस पानी को संरक्षित करने पर किसी का ध्यान नहीं गया।
प्रधानमंत्री ने भी बस मन की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। सरकार नल से जल की नीति तो ला रही है। लेकिन जब जमीन के नीचे पानी ही नहीं होगा तो सब घर पानी कैसे पहुच पाएगा। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2021 तक देश के 20 बड़े शहरों का ग्राउंड वॉटर खत्म हो जायेगा। हमने पानी संरक्षण किया नहीं इसलिए उसका नतीजा कुछ दिनों बाद मिल ही जाएगा। जब हम पानी की समस्या से फिर से जूझ रहे होंगे। इन सब पर गौर कीजिए और थोड़ा समझिए कि जलवायु परिवर्तन पर बात करना क्यों जरूरी है?
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