इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री आवास के एक कमरे में बैठी थी। तब इन्दिरा काँग्रेस की अध्यक्ष हुआ करती थी। कमरे में उनके साथ एक और शख्स बैठा हुआ था। तभी उस कमरे में एक और शख्स आता है इन्दिरा के साथ उस शख्स को देखता है और गुस्से में इन्दिरा गांधी से कहता है- “मुझे तुमसे कुछ कहना था लेकिन अब बाद में कहूँगा”। इस वाकये को सुनकर लगता है कि वो गुस्सैल व्यक्ति फिरोज गांधी होंगे लेकिन वो शख्स फिरोज गांधी नहीं कोई और था। जिसने आगे चलकर बताया कि इन्दिरा गांधी और उसके बीच प्रेम संबंध थे। तब की बात में आज किस्सा इन्दिरा गांधी के प्रेम संबंध की।
फिरोज और इन्दिरा गांधी के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई थी कि लगने लगा था कि जल्दी ही दोनों के बीच तलाक हो जाएगा। इसका कारण फिरोज के कई लड़कियों के साथ प्रेम संबंध थे जिसके कारण इन्दिरा और फिरोज के रिश्ते खराब होने लगे थे। जवाहर लाल नेहरू तो पहले से ही फिरोज गांधी को पसंद नहीं करते थे। फिरोज कि मौत के दो साल पहले 1958 में पुपुल जयकर ने इंदिरा को उड़ रही अफवाह के बारे में बताया था कि फिरोज से बदला लेने के लिए वे कई पुरुषों के साथ प्रेम संबंध बना रही हैं। ये सुनकर इंदिरा गांधी ने गुस्से में कहा- ‘इससे पहले कि तुम दिल्ली की गपशप मंडली से इस बारे में जानो, मैं तुम्हें बता दूं कि मैं फिरोज को तलाक दे रही हूँ’। फिरोज गांधी ने भी ऐसा ही कुछ अपने दोस्तों से गुस्से में कहा था। फिरोज ने इंदिरा को इन्दु या मेरी पत्नी कहना बंद कर दिया था। उसकी जगह फिरोज उनको श्रीमती गांधी कहकर पुकारते।
जवाहर लाल नेहरू का पूरा जीवन बेहतर लोगों से दोस्ती बनाने में बीता। जिसका फायदा बाद में इन्दिरा गांधी को भी मिला। डीपी धर और पीएन हक्सर पंडित नेहरू के ही करीबी थे जिन्होने इन्दिरा गांधी का साथ कभी नहीं छोड़ा। ऐसे ही एक शख्स और हैं जिन्होने जवाहर लाल नेहरू को बड़े करीब से देखा, एम ओ मथाई।
एम ओ मथाई 1946 से 1959 तक जवाहर लाल नेहरू के पर्सनल सेक्रेटरी रहे। एम ओ मथाई छोटे कद के फुर्तीले शख्स जो अपने काम को पूरी लगन से करते। उनकी यही लगन उनको नेहरू परिवार के इतने करीब बनाए हुये थी। उन्हें सभी लोग मैक कहकर पुकारते थे। मथाई नेहरू के बहुत करीब थे, वे उन लोगों में आते थे जिन पर जवाहर लाल नेहरू आँख मूंदकर विश्वास कर लेते थे। उनकी पंडित नेहरू से ये नजदीकी इन्दिरा गांधी को पसंद नहीं थी। इसका तोड़ उन्होने प्रेम निकाला। इन्दिरा गांधी कथित रूप से मथाई कि प्रेमिका थीं। एम ओ मथाई ने एक किताब लिखी ‘रेमिनिसेंसेज ऑफ नेहरू एज’, जिसमें एक चैप्टर है ‘शी’। इसमें मथाई ने इन्दिरा गांधी और अपने प्रेम के बारे में लिखा है। हालांकि ये किताब जब छपी थी तब उसमें ये चैप्टर नहीं था। जिसे बाद में मेनका गांधी ने लोगों के सामने प्रसारित किया था।
इस किताब में लिखा है कि जवाहर लाल नेहरू एडविना माउंटबैटन, पद्मजा नेहरू और मृदुल साराभाई जैसी सुंदरियों के साथ व्यस्त रहते थे। जिसकी वजह से वे अपनी सरकार सही से नहीं चला पा रहे थे। इन्हीं कारणो से हम 1962 कि जंग में चीन से हार गये। अब उस चैप्टर पर आते हैं जिसमें इंदिरा और मथाई के प्रेम के बारे में लिखा गया है। मथाई ने इस चैप्टर में लिखा कि उनके और इंदिरा के बीच गहरा प्रेम था और इस प्रेम कि शुरुआत इंदिरा के घर में हुई थी। मथाई बताते हैं कि उनके और इंदिरा के बीच 12 साल तक प्रेम बना रहा। मथाई ने इस चैप्टर में लिखा कि उनके प्रेम से इंदिरा एक बार माँ भी बनीं थीं। जिसका इंदिरा ने अबॉरशन करा लिया था।
मथाई लिखते हैं कि इंदिरा ने उनसे एक बार कहा था- मैं तुम्हारे साथ सोना चाहती हूँ।’ जिसके जवाब में मथाई ने कहा था कि मुझे अभी इसका अनुभव नहीं है। तब इंदिरा ने उनको दो किताबें दीं जिसमें सेक्स के बारे में में जानकारी दी गई थी। मथाई ने इस चैप्टर में लिखा कि इंदिरा उनके हाथ को सख्ती से पकड़े रहती थीं और प्यार से उनको भूपत कहती। मथाई भी इंदिरा को पुतली कहा करते थे। इसी चैप्टर में मथाई इंदिरा के बारे में लिखते हैं- उसकी क्लियोपैट्रा जैसी नाक है, पाऊलिन बोनापार्ट जैसी आँखें हैं और वीनस जैसे स्तन हैं। उसकी रूखी और घृणास्पद छवि केवल सुरक्षा का कवच था, वे बिस्तर पर बड़ी मजेदार थीं। संभोग के दौरान उसमें फ्रांसीसी औरतों और केरल की महिलाओ का मिश्रण होता, इंदिरा को लंबे-लंबे चुंबन पसंद थे। इस चैप्टर की आखिरी लाइन है- मैं भी उसे प्रेम करने लगा था।
इस प्रेम संबंध पर इंदिरा ने कभी कोई बात नहीं की। नेहरू के जीवनी लेखक और सर्वपल्ली गोपाल ने उन दोनों के बारे में कहा था- उनको एक-दूसरे को लुभाने में बड़ा मजा आता था। इंदिरा मथाई को कुछ ज्यादा ही बढ़ावा देती थीं। कांग्रेस के नटवर शाह इस बारे में कहते हैं- मथाई ने नेहरू परिवार को बहुत नुकसान पहुंचाया। उन्होने अपने स्वार्थ के कारण इस प्रेम संबंध की अफवाह फैलाई। फिरोज के दोस्त निखिल चक्रवर्ती ने जब मथाई को पैसों के लेनदेन में गड़बड़ी करते पाया तो 1959 में उनको नेहरू परिवार से सेवा त्यागनी पड़ी। इस कहानी की शुरुआत मैंने एक किस्से से की थी। वो किस्सा था मथाई और इंदिरा के प्रेम सम्बन्धों के खत्म होने का। जब मथाई ने इंदिरा को धीरेन्द्र ब्रांहचारी के साथ देखा तो मथाई इंदिरा की जिंदगी से हमेशा के लिए चले गये। ये किस्सा है सच और झूठ के बीच का। सच क्या है वो तो या तो इंदिरा को पता था या मथाई को। मथाई ने अपने हिस्से की बातें बता दी हैं लेकिन इंदिरा की चुप्पी इस वाकये को बंद तिजोरी की तरह छोड़ गई हैं। हमारे पास तो कहानी थी सो बता दी अब सही है या गलत। ये आपके विवेक पर छोड़ते हैं।
इस आर्टिकल के अंश सागरिका घोष की किताब इन्दिरा से भी लिए गए हैं।
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