'दर्शकों के दिलों में बस हीरो बसते हैं, हमारी कोई पहचान नहीं होती।'
कामयाब मूवी का ये डायलाॅग इस मूवी की कहानी है। फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म बनाई जाती है हीरो के लिए लेकिन उसके अलावा भी बहुत सारे किरदार हो जाते हैं। इनको हम अक्सर भूल जाते हैं। साइड एक्टर, सर्पोटिंग एक्टर या आर्टिस्ट, इन्हें यही कहा जाता है। ऐसे ही साइड एक्टरों की कहानी को बताती है ये मूवी। इसमें कुछ साइड एक्टरों ने अपना रोल खुद ही किया है।
कहानी
सुधीर जो कि इस फिल्म का नायक है और इसको निभाया है संजय मिश्रा ने। सुधीर भी एक कैरेक्ट आर्टिस्ट है जो अब बूढ़ा हो चुका है। उसकी एक बेटी है और एक पोती भी। जो उसको बहुत प्यार करतीं हैं हालांकि वो उनके साथ नहीं रहता है। एक डायलाॅग ‘एंजाॅइंग लाइफ और ऑप्शन क्या है’ की वजह से फेमस सुधीर एक स्कैंडल की वजह से कई सालों से फिल्मों में काम नहीं किया है। एक इंटरव्यू के दौरान उसे पता चलता है कि उसने 499 फिल्मों में काम किया है। बस अब वो 500वीं फिल्म के लिए फिर से एक्टिंग करना चाहता है। बस उसी फिल्म के लिए निकल पड़ता है फिर से फिल्मों की गलियों में।
उसे फिल्म लेने के लिए ऑडिशन देने पड़ते हैं और सुधीर को उसकी आदत नहीं है। ऐसी ही कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। संजय को 500वीं फिल्म दिलवाने का काम करता है, दिनेश गुलाटी। गुलाटी का कैरेक्टर प्ले किया है दीपक डोबरियाल ने। उसके बाद क्या होता है, सुधीर अपनी 500वीं मूवी कर पाता है या नहीं, ये सब जानने के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। फिल्म में कई जगह काॅमेडी है जो दर्शकों को बांधे रखती है। बहुत सारे इमोशनल सीन भी हैं लेकिन सबसे ज्यादा इमोशनल करता है एक सीन। जिसमें संजय बार-बार रीटेक करते हैं।
फिल्म में एक सीन है जिसमें संजय को उनकी पड़ोसी कहती है, बड़ा बेकार शहर है रिजेक्शन की आदत डलवा देता है। ये डायलाॅग उन सभी के बारे में बताता है जो फिल्म की दुनिया में जाते हैं। सभी को कहीं न कहीं रिजेक्शन तो देखना ही पड़ता है। साइड एक्टर जब रिजेक्ट होता है तो उसे क्या फील होता है, होता क्या है? ये सब इस मूवी को देखने पर पता चलता है। साइड एक्टर को सुधीर इस मूवी में आलू कहते हैं जो हर जगह चल जाता है। वो कहते हैं, ‘बच्चन हो, खान हो या कपूर, हम हर जगह फिट हो जाते थे’। फिल्म हीरो की वजह से चलती जरूर हो लेकिन उसे पूरा करते हैं ये साइड एक्टर। साइड एक्टर को कोई याद नहीं रखता है और बूढ़े होने पर कब गायब हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। इसके बावजूद ये हमेशा हमेशा आर्टिस्ट रहेंगे। जिनको अपनी एक्टिंग पर काम मिलता है। फिल्म में एक डायलाॅग भी है, चीजें पुरानी हो जाती हैं बेकार नहीं’।
किरदार
सुधीर का किरदार निभाया है संजय मिश्रा ने। उनकी एक्टिंग ही इस मूवी को बेहद अच्छा और संजीदा बनाती है। फिल्म वो क्लाइमैक्स सीन जब वो अपनी सारी एक्टिंग लोगों को दिखा देते हैं। संजय एक ही समय में कितनी ही एक्टिंग और कितने ही एक्सप्रेसन निकाल देते हैं। संजय को सीन में देखना सुकून देता है, लगता है कुछ बहुत अच्छा देख रहे हैं।
संजय मिश्रा के अलावा दीपक डोबरियाल हैं। दीपक इस मूवी में दिनेश गुलाटी बने हैं जो कास्टिंग डायरेक्टर हैं। जिस तरह कास्टिंग डायरेक्टर होते हैं वैसे ही दीपक गुलाटी इसमें दिखाई देते हैं। उनकी एक्टिंग बेहद अच्छी थी, कहीं से भी वो कम नजर नहीं आ रहे थे।
फिल्म कितनी कामयाब रही, कितनी नहीं, सुधीर कामयाब हुए या नहीं ये तो आपको देखने पर ही पता चलेगा। मैं तो बस इतना कहूंगा कि ऐसी फिल्में कम बनती हैं आपको इसे देखना चाहिए। हार्दिक मेहता ने इस मूवी को डायरेक्ट किया है। प्रोड्यूसर हैं गौरी खान, मनीष मुन्द्रा और गौरव वर्मा। मार्च 2020 में ये मूवी रिलीज हुई थी। अभी ये मूवी आपको नेटफ्लिक्स पर मिल जाएगी। जिस तरह इस मूवी में सुधीर एक डायलाॅग की वजह से फेमस हुआ था, वैसा ही फिल्म खत्म होने पर आपके दिमाग में वो चढ़ जाएगा।
‘एंजाॅइंग लाइफ और ऑप्शन क्या है।’
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