'हम आएंगे अपने वतन और यहीं पर दिल लगाएंगे, यहीं के पानी में हमारी राख बहाई जाएगी।'
ये डायलाॅग कश्मीर पंडितों के उस दर्द को बयां करने के लिए काफी है लेकिन अगर आप यही सोचकर शिकारा मूवी देखेंगे तो थोड़ा निराश होंगे। शिकारा तो एक कश्मीरी जोड़े कह लव स्टोरी है। जिसमें कश्मीरी पंडित का विस्थापन है, कुछ-कुछ हालात दिखाए गए हैं और कुछ बाद की जिंदगी। ये सब कुछ सिमटा रहता है शांति और शिव की लव स्टोरी में। जो अपने घर जाना चाहते हैं, शिकारा।
कहानी
फिल्म शुरू होती है एक रिफ्यूजी कैंप से, जहां सब सो रहे हैं। उस सन्नाटे में एक ही आवाज आ रही है टाइपराइटार की। कुछ ही मिनटों में कहानी के दोनों किरदारों को दिखा दिया जाता है, शिव और शांति। दोनों बूढ़े हो चुकेे हैं और अमेरिका के राष्टपति से मिलने आगरा जाते हैं। वहीं से कहानी फ्लैश बैक में चली जाती है, कश्मीर। कैसे शिव और शांति मिलते हैं? उनकी शादी और कुछ किरदार जो मूवी में कुछ देर के लिए ही दिखाई देते हैं। कुछ ही मिनटों में ये सब कुछ दिखा देते हैं।
ये कहानी वैसे तो है शिव और शांति के 30 साल लंबे प्रेम की। जिसके एक-दूसरे से तो प्यार है ही, अपने घर से भी प्यार है। ‘आपको जाना होगा यहां से, कश्मीर हमारा है’, सिर ढको फरमान नहीं पढ़ा हमारा’। ऐसे ही कुछ बातों और दृश्य से उस समय के माहौल को दिखाने की कोशिश की गई है। फिर वो रात दिखाई जाती है जब घाटी में आग-आग होती है। कश्मीरी पंडितों को घरों को जलाया जाता है। उसके बाद लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़कर जम्मू जाते हैं। ये सब कुछ बहुत जल्दी में दिखाया जाता है। थोड़ा और विस्तार से उस रात की कहानी को बताया जा सकता है।
लाखों लोग जम्मू के शरणार्थी कैंप में रहने लगते हैं। साल दर साल कैंप अच्छा हो जाता है लेकिन कश्मीर पर कोई बात ही नहीं दिखाई जाती है। न उस समय की राजनीति और आतंकवाद, यहां तक की कैंप को भी बहुत ज्यादा नहीं दिखा पाए। फिल्म का एक-दो डायलाॅग जरूर इस बात को दिखाने की कोशिश करते हैं। मूवी में एक सीन है जिसमें शिव अपने पुराने दोस्त लतीफ से मिलता है। तब लतीफ कहता है, हम लोग एक-दूसरे को मारते रहेंगे और जिन्होंने हमारे हाथ में बंदूक पकड़ाईं, वे चुनाव जीतते रहेंगे। ये साल 21 साल, 100 साल और हजार साल ऐसे ही चलता रहेगा।
बीच-बीच में कुछ कविताएं इमोशनल और प्लस प्वाइंट के रूप में जरूर आती हैं। वो कविता तो सबको बेहद प्यारी लगेगी जब गाड़ी से शिव और शांति वापस कश्मीर आते हैं और बैकग्राउंड में एक कविता चलती-रहती है। इसके अलावा कश्मीर का लोक संगीत और कल्चर को शादी और गानों में दिखाया गया है। मुझे लगता है ये फिल्म इस लव स्टोरी के लिए याद की जाएगी। जिसमें शिव शांति के एक वायदे को पूरा करने के लिए अपने घर को बेचता है। वो जो उनका घर नहीं कश्मीर है, घर जिसे वो शिकारा कहते हैं। जब वो अपने घर को कई सालों बाद देखने जाते हैं तो वो दृश्य भावुक कर देता है।
किरदार
लीड रोल में शिव का किरदार किया है, आदिल खान ने। आदिल खान ने अच्छी एक्टिंग की है। उनके एक्सप्रेशन प्रभाव डालते है। उनको स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। उससे ज्यादा अच्छा लगता है सादिया को देखना। सादिया ने इस मूवी में शांति का किरदार निभाया है। इन्होंने एक्टिंग बहुत अच्छी की है। मूवी में दोनों की जोड़ी कमाल लग रही है।
शिकारा को डायरेक्ट किया है, विधु विनोद चोपड़ा ने। आपको इसको अमेजन प्राइम पर देख सकते हैं। मूवी बहुत खराब नहीं है देखी जा सकती है लेकिन कुछ कमियों की आलोचना की जा सकती है। मूवी कुछ-कुछ बिखरी हुई-सी लगती है। ये न तो पूरी तरह से कश्मीर के उस दर्द को को बता पाती है और न पूरी तरह से लव स्टोरी है। इसमें कुछ प्रेम है, कुछ नफरत है और कुछ दर्द है अपने शिकारा तक न पहुंच पाने का। फिल्म के आखिर तक पहुंचने-से पहले एक डायलाॅग है। जो इस फिल्म का पूरा तो नहीं कुछ-कुछ मौजूं है। उस सीन में शांति शिव से कहती है,
‘‘सारी उम्र बीत गई न पता ही नहीं चला।’’
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