Sunday, May 3, 2020

थप्पड़ मारने से ज्यादा बुरा है उसे गलत न मानना

उसने मुझे मारा पहली बार नहीं मार सकता, एक बार भी नहीं। बस इतनी-सी बात है।


ये डायलाॅग थप्पड़ मूवी की पूरी कहानी बताता है। इस मूवी में पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है और उस औरत को कहा जाता है कि जाने दो कोई बड़ी बात नहीं है। गलती उस पुरूष की नहीं है जिसने थप्पड़ मारा। गलती है लड़की की मां की जिसने कहा कि औरतों को बर्दाश्त करना चाहिए। गलती है इस समाज की जिसने बताया कि थप्पड़ मारना मर्द का हक है। थप्पड़ की कहानी इसी हक को झुठलाने का काम करती है।

फिल्म शुरू होती है कुछ किरादारों से जो फिल्म की भूमिका बनाने का काम करते हैं। उसके बाद दिखाई देता है एक परिवार। जिसमें अमू(तापसी पन्नू) अपने पति विक्रम और अपनी सास के साथ रहती है। अमू हाउसवाइफ और उसका पति विक्रम बड़ी-सी कंपनी में काम करता है। जिसे ऑफिस से लंदन भेजा जा रहा है। पति के इस सपने को अमू अपना मानकर बहुत खुश होती है। लंदन जाने की खुशी में पार्टी होती है और उसी पार्टी में विक्रम अमू को थप्पड़ मार देता है। अमू हर रोज की तरह अगले दिन घर के सारे काम करती है। मगर अब उसके चेहरे से हंसी गायब हो गई थी और एक टीस आ गई थी।


विक्रम उस थप्पड़ के लिए न ही माफी मंगाता है और न ही उसे वो अपनी गलती लगती है। वो तब भी अपनी ही परेशानी बताता रहता है। फिल्म में एक जगह विक्रम अमू से कहता है ‘जिस कंपनी के लिए आप सब कुछ दो। जब पता चले कि वहां आपकी वैल्यू ही नहीं है तो वहां कैसा लगता है?’ विक्रम बोल ये अपने लिए रहा था और अमू को वैसा ही इस घर के लिए महसूस हो रहा था। कुछ दिनों तक वही मायूसी से सब कुछ चलता रहता है। फिर एक दिन अचानक अम्मू पति का घर छोड़कर पिता के घर आ जाती है।

आखिर ये हुआ ही क्यों?


फिल्म में एक सीन है जब विक्रम अपने ससुर से बात कर रहा होता है। तब वो कहते हैं ‘सवाल ये नहीं है कि अब क्या, उससे बड़ा सवाल ये हुआ ही क्यों?’ अनुभव सिन्हा की ये फिल्म उन छोटी-छोटी बातों को बताती है जिनको हम सब बहुत सामान्य मानते हैं। वो थप्पड़ सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था। उस थप्पड़ से गिरा था उस औरत का सम्मान, उस थप्पड़ ने छीनी थी औरत की खुशी। इस एक थप्पड़ के बहाने अनुभव और भी बहुत सारी कहानियों को साथ-साथ दिखाते हैं। एक औरत जो अमू के घर काम करती है, एक औरत जो उसकी मां है, एक औरत जो उसकी सास हैं। सब कहीं न कहीं किसी न किसी लेवल पर अपनी खुशी को छोड़कर फैमिली की खुशी का ध्यान रखती हैं। कुछ अपने रिश्ते को बचाने के लिए चुप रहती हैं। हम अपने आसपास देखें तो ये सब कुछ हमारे आसपास हो रहा है। मूवी में एक जगह तापसी पन्नू कहती हैं, मुझे खुशी और सम्मान चाहिए। शायद इस समाज ने सोचा ही नहीं कि पत्नी की भी अपनी इच्छाएं और खुशियां हो सकती हैं।


हमारे समाज में जब पत्नी के साथ कुछ गलत होता है तो आसपास की महिलाएं ही उसे कदम बढ़ाने से रोकती हैं। इस मूवी में भी अमू को उसकी मां और सास भी रिश्ता बचाने को कहती हैं। फिल्म में ये बेहद संजीदगी से बताया कि महिलाएं अपने परिवेश और परंपरावादी सीख की वजह से उस रिश्ते को ढोती हैं। फिल्म आगे बढ़ती है तो कुछ कानूनी पेंच आते हैं। तलाक और बच्चे की कस्टडी पर दांव लगता है। अपने को सही साबित करने के लिए एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगते हैं। फिर अनुभव सिन्हा की हर फिल्म की तरह ही इसमें भी एक मोनोलाॅग होता है।

तापसी इस मोनोलाॅग में उस थप्पड़ और सबकी चुप्पी पर सवाल उठाती हैं। वो पूछती है कि आखिर क्यों किसी ने विक्रम को नहीं कहा कि उसकी गलती है? ऐसी ही बहुत सारे सवाल उठाती हैं ये फिल्म। फिल्म खत्म होती है एक अच्छे अंत से। बाकी महिलाएं जो चुप थी और सह रही थी वो अपने आपको घुटन से बाहर निकाल फेंकती है। इसके अलावा बाप-बेटी का रिश्ता बेहद अच्छे तरीके से दिखाया है। पिता को बेटी के लिए कैसा होना चाहिए, उसको पैमाना भी बनाती है ये मूवी।

किरदार


तापसी पन्नू ने अपने संजीदगी और गंभीरता से इस कहानी को बेहद सफल बनाया। उनके अलावा मूवी में उनके पति का किरदार निभाया है पैवल गुलाटी ने। पिता बने हैं कुमुद मिश्रा जो जिन्होंने लाजवाब काम किया है। इसके अलावा रत्ना पाठक और तन्वी आजमी भी है। दिया मिर्जा और मानव कौल थोड़ी-थोड़ी देर के लिए स्क्रीन पर नजर आते हैं।



मुझे लगता है कि ये एक बेहद सफल फिल्म है जो खत्म होने के बाद भी आपके दिमाग में चलती रहती है। ये फिल्म बेहद जरूरी है जिसे हर किसी को देखनी चाहिए। ताकि वो समझ सके कि थप्पड़ मारना किसी का हक नहीं बल्कि अपराध है।

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