Thursday, June 18, 2020

एक्सपेडिशन हैप्पीनेसः अगर आपको घूमना पसंद है तो इस मूवी से प्यार हो जाएगा

ऐसी बहुत कम मूवी हैं जो पूरी तरह से ट्रेवलिंग पर हैं या हो सकता है मैंने बहुत कम देखी हैं। इसके बावजूद अगर आप एक्सपेडिशन हैप्पीनेस देखेंगे तो इससे प्यार हो जाएगा। वैसे ये मूवी नहीं है एक डाक्यूमेंट्री है या फिर कह सकते हैं ट्रेवल ब्लाॅग है। ये डाक्यूमेंट्री एक रोड ट्रिप की है और इस रोड ट्रिप में वो सब है जो हर घुमक्कड़ करना चाहता है। अगर आपको घूमने से थोड़ा भी प्यार है तो इसको जरूर देखिए। 96 मिनट की ये ट्रेवल डाक्यूमेंट्री किसी मूवी से कम नहीं है।


क्या है इसमें?


ये डाक्यूमेंट्री है दो जर्मन कपल की। जो शुरू के चंद मिनटों में अपने बारे में और साथ मिलने के बारे में बताते हैं। फेलिक्स एक सिनेमेटोग्राफर है जिसे घूमना बहुत पसंद है और सेलिमा एक सिंगर है जो अपने गाने खुद लिखती है। दोनों एक ट्रिप पर मिले और अब दोनों एक और ट्रिप का प्लान बनाते हैं। दोनों एक रोड ट्रिप पर जाने की की सोचते हैं। वे आनलाइन एक स्कूल बस लेते हैं और फिर उसका कायापलट कर देते हैं। तीन महीने उस पर काम करते हैं और उसे घर बना देते हैं। उसके बाद चल पड़ते हैं अपनी रोड ट्रिप पर। फेलिक्स और सेलिमा के अलावा उनके साथ एक कुत्ता होता है। जिसका नाम है रूडी।


इस बस में वो सब होता है जो एक बड़े-से घर में होता है, वाशरूम, लिविंग रूम और किचन। वो लाइट के लिए सोलर सिस्टम और जनरेटर साथ रखते हैं। पानी के लिए वाॅटर टैंक जैसी जरूरी चीजें साथ में होती हैं। अपनी रोड ट्रिप में कनाडा, अलास्का, नाॅर्थ अमेरिका, वेस्ट कोस्ट और मैक्सिको तक जाते हैं। सात महीने की इस लंबी यात्रा में वे पहाड़, समुद्र, नदी, शहर, गांव, जंगल, ग्लेशियर सब कुछ देखते हैं। जब तक सब कुछ सही चल रहा होता है तो लगता है कि घुमक्कड़ी इतनी आसान नहीं होती है। फिर जब कुछ परेशानी आती हैं, समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो घुमक्कड़ी में होना स्वभाविक है। मगर जब वो प्रकृति के बीच होते हैं तो सारी परेशानियों को भूल जाते हैं। एक जगह फेलिक्स कहते भी हैं जब सुबह-सुबह उठो, दरवाजा खोलो तो सामने नदी, पहाड़, झरने देखते हैं। तब जो एहसास होता है वहीं एक्सपेडिशन हैप्पीनेस है।

घुमक्कड़ कपल।

डाक्यूमेंट्री का पहले हाफ में सिर्फ घुमक्कड़ी ही घुमक्कड़ी है और दूसरे हाफ में घुमक्कड़ी के साथ-साथ स्थानीय लोगों के साथ बातचीत, स्ट्रीट फूड भी है। जहां-जहां पहुंचते हैं फेलिक्स और सेलिमा उस जगह के बारे में बताते हैं, कहां जाना है, क्या करने वाले हैं, सब कुछ बताते हैं। ये सब वैसा ही है जैसा एक ट्रेवल ब्लाॅगर अपने छोटे-से ब्लाॅग में बताता है। बस ये बहुत लंबी यात्रा का लंबा डाक्यूमेंट है। कैमरे का काम दोनों लोगों ने किया है। बहुत सारे शाॅट ड्रोन के हैं, कुछ गोप्रो के हैं और कुछ शाॅट कैमरे के हैं। फेलिक्स प्रोफेशनल सिनमेटोग्राफर हैं इसलिए कैमरे का वर्क बहुत अच्छा है। ये डाक्यूमेंट्री अच्छी लगती है क्योंकि नजारे इतने अच्छे तरीके से शूट किए हैं कि देखकर प्यार हो जाता है। कभी पहाड़, कभी फाॅल्स, कभी पहाड़ों के बीच बस, तो कभी सूरज का डूबना तो कभी सूरज का उगना।

ये नजारे।

जब बस चल रही होती है और खूबसूरत नजारे दिखाई दे रहे होते हैं। तब बैकग्राउंड में सुनाई दे रहे होते हैं कुछ गाने और म्यूजिक। जिसको लिखा और गाया है खुद सेलिमा ने। इनको सेलिमा अपनी यात्रा के दौरान ही लिखती हैं। वो अंग्रेजी गाने समझ तो नहीं आते लेकिन कानों को अच्छे लगते हैं, म्यूजिक साॅफ्ट है। दोनों घूमने के बारे में बहुत कुछ बताते हैं, जिसको सुनकर आपका भी घूमने का मन करने लगेगा। सोलो ट्रेवलिंग और दो लोगों के घूमने में क्या खास अंतर है? कौन-सी ट्रेवलिंग ज्यादा अच्छी है। वीजा मिलने में क्या-क्या समस्या आती है ये भी ये डाक्यूमेंट्री बताती है। दुनिया में अच्छे लोग बहुत हैं, डाक्यूमेंट्री में ये भी देखने को मिलता है। अगर आपको उस जगह की भाषा नहीं भी आती हो तब भी घूमने में समस्या नहीं आती है।

घर जैसी बस।

इन अच्छाईयों के बावजूद मुझे इस डाक्यूमेंट्री में कुछ कमियां नजर आईं। पहला तो घूमने की तैयारी बस को तैयार करने के अलावा और क्या किया? ये बिल्कुल नहीं बताया गया। बजट के बारे में डाक्यूमेंट्री में कुछ भी नहीं बताया जाता। इसके अलावा एक और चीज जो मुझे लगा मैं नहीं कर सकता वो है, ये लक्जीरियस। ये रोड  पूरी तरह से आरामदायक और पैसे वाली रही। इन सबको छोड़ दिया जाए तो ये डाक्यूमेंट्री बहुत अच्छी है। दोनों ने कमाल का काम किया है, अपनी यात्रा को कहानी की तरह बताया है। येे डाक्यूमेंट्री अंग्रेजी में है और नेटफ्लिक्स पर मिल जाएगी। अगर आप कुछ बेहतरीन और अलग देखनी की सोच रहे हैं एक्सपेडिशन हैप्पीनेस देख डालिए। ये आपके चेहरे पर पक्का खुशी ले आएगी।

Tuesday, June 16, 2020

एक्सोनः नॉर्थ ईस्ट फूड, दोस्ती और भेदभाव को दिखाती है ये मूवी

अक्सर मैंने न्यूज और शाॅर्ट-फिल्मों में देखा है कि नाॅर्थ ईस्ट के लोगों से देश के बड़े शहरों में खराब व्यवहार किया जाता है। जिस वजह से उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार तो उनके साथ मारपीट भी हो जाती है। मेरी ही तरह अगर आपको नहीं पता कि उनके साथ इन शहरों में कैसा व्यवहार होता है? किन परेशानियों का इन लोगों को सामना करना पड़ता है तो नेटफ्लिक्स पर आई ये मूवी आपको जरूर देखनी चाहिए। एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश को बनाने के बहाने एक बड़े शहर में नाॅर्थ ईस्ट के लोगों की जिंदगी को दिखाने की कोशिश की गई है।


कहानी


ये कहानी है दिल्ली में रह रहे कुछ नार्थ-ईस्ट इंडियंस की। जो अपने दोस्त की शादी में एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश बनाना चाहते हैं, अखुनी। इन लोगों को डर है कि वे अखुनी बनाएंगे तो उसकी गंध सबके घर में जाएगी। इसलिए वे डिश को तब बनाते हैं जब सब आॅफिस चले जाते हैं लेकिन फिर भी पकड़े जाते हैं। अपने दोस्त की शादी को और खास बनाने के लिए वे किसी भी हालत में इस डिश को बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां भी बनाते हैं वहां इसकी गंध उनको रोक दे रही थी। ये मूवी उस एक दिन की कहानी है जो इन लोगों के लिए बहुत थकान और चिंता भरा होता है। एक समस्या खत्म होती नहीं है कि उनके सामने दूसरी परेशानी खड़ी हो जाती है। कभी गैस का खत्म होना, कभी पड़ोसियों की धमकी तो कभी आपस का ड्रामा। इन सबके बावजूद क्या वो अखुनी बना पाते हैं या फिर बिना अखुनी के ही शादी होती है? ये जानना है तो तो आपको ये मूवी देखनी होगी।

मूवी का एक सीन।

मूवी में एक सीन है जहां बेडोंग अपनी गर्लफ्रेंड को कहता है कि ये शहर नरक है, मैं यहां नहीं रहना चाहता। ये एक डायलाॅग दिल्ली में नाॅर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ बदतमीजी को बताने की कोशिश करता है। बेडोंग इसलिए भी इस शहर से नफरत करता है क्योंकि उसके बहुत पहले कुछ लोगों ने पीटा था। जब उसकी गर्लफ्रेंड को एक लड़का कुछ कहता है तो वो कहता है कि उसने नहीं सुना। शायद उसे खुद पर हुई घटना याद आ जाती है। इसके अलावा भी बहुत सारे सीन हैं जहां इन लोगों के साथ भेदभाव को दिखाया गया है। एक सीन में पड़ोसी इन लोगों को धमकाते हुए कहता है कि तुम लोगों को रूम ही नहीं देने चाहिए। मुनरिका में लोगों ने यही किया है। इन लोगों पर ये बड़े शहर अपनी बातों से अटैक करते हैं, मलाई, इसकी भी तो आंखें भी नहीं खुली, सब एक जैसे ही तो लगते हो आप।

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बड़े शहर के लोगों को ही गलत दिखाया गया है। मूवी में एक सीन है जब बेडोंग दिल्ली में रहने वाले शिव से कहता है, यहां से जाओ, इंडियंस। कुछ देर सन्नाटा रहता है और फिर दिल्ली का शिव दूसरे नाॅर्थ-ईस्ट दोस्त से कहता है, तुम लोग अपने आपको इंडियंस नहीं समझते क्या? ऐसा लगता है मूवी में ये सवाल सभी नार्थ-ईस्ट इंडियंस के लिए है। ये सीन मूवी का सबसे अच्छा दृश्य है।  इन सबके अलावा एक्सोन दिल्ली में रह रहे नार्थ-ईस्ट के लोगों की दोस्ती को दिखाता है। कुछ-कुछ झगड़े और मनमुटाव तो हर रिश्ते में होते हैं। एक दोस्त के लिए वे उस डिश को बनाते हैं जो उनके लिए समस्या खड़ी कर सकती है। मूवी में प्रेम और ब्रेक अप को भी दिखाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा मूवी में नार्थ-ईस्ट के कल्चर को दिखाने की कोशिश की है। वहां के फूड, वहां की वेशभूषा, वहां की बोली और शादी कैसे होती है? ये भी दिखाने की कोशिश की गई है।


किरदार


मूवी में ज्यादातर रोल खुद नार्थ-ईस्ट इंडियंस के ही किए हैं। चान्वी के रोल में दिखीं लिन लैशराम, बेंडोंग का किरदार निभाया है लानुआकुम ओ ने। नार्थ-ईस्ट के सभी कैरेक्टर में सिर्फ सयानी गुप्ता ही ऐसी ही हैं जो नार्थ-ईस्ट इंडियन नहीं है। सयानी गुप्ता इससे पहले फोर मोर शाॅट्स प्लीज बेब सीरीज में दिखाई जा चुकी हैं। सयानी गुप्ता ने इसमें उपासना के किरदार में हैं। उन्होंने इस रोल के लिए काफी मेहनत की है। इसमें वे अच्छी लग भी रही हैं। कैमरे के सामने आती हैं तो उनको देखकर अच्छा लगता है। इसके अलावा मकान मालिकन के किरदार में रहीं डाॅली आहलूवालिया और उनके दामाद के रोल में दिखे, विनय पाठक। जो सीन पर आते हैं तो बस हंसाते हैं। इसके अलावा आदिन हुसैन कुछ-कुछ सीन में एक बिस्तर पर बैठे दिखाई देते हैं लेकिन उनका डायलाॅग एक भी नहीं है।


एक्सोन एक काॅमेडी ड्रामा मूवी है। जिसके डायरेक्टर हैं निकोलस खारकोंगोर ने। निकोलस ने बहुत सही मुद्दे को सिनेमा में दिखाने की कोशिश की है। डायरेक्टर ने अच्छा और सुखद अंत करने की कोशिश नहीं की। वो कमियां और परेशानियां वैसी ही रहने दीं जैसे कि शुरू में दिखाई गई हैं। मूवी में कुछ-कुछ जगहों पर स्थानीय संगीत भी सुनाई देता है। उनके बोल समझ नहीं आते लेकिन सुनकर अच्छा लगता है। इसके प्रोड्यूसर हैं सिद्धार्थ आनंद कुमार और विक्रम मेहरा। आपको ये मूवी नेटफ्लिक्स पर जरूर देखनी चाहिए।

Monday, June 8, 2020

चोक्ड-पैसा बोलता हैः नोटबंदी पर नहीं है ये मूवी, वो तो महज एक हिस्सा है

अनुराग कश्यप की नेटफ्लिक्स पर एक नई मूवी आई है, चोक्ड-पैसा बोलता है। सबको लग रहा है कि ये मूवी नोटबंदी और सरकार की आलोचना पर बनी है। जब किसी मूवी के बारे में पहले से राय बनने लगती है तो उसके हिट होने के चांस बढ़ जाते हैं। इस मूवी का जिस तरह से एजेंडा बना है उससे अनुराग कश्यप खुश ही होंगे। नोटबंदी मूवी का महज एक हिस्सा है लेकिन उसका होना भी बहुत जरूरी है। ये कहानी तो है रिश्तों के चोक्ड होने की, ये कहानी है सपनों के चोक्ड होने की और ये कहानी है रोज की जिंदगी के चोक्ड होने की। अचानक पैसा आने से आम आदमी की चोक्ड जिंदगी कैसी हो जाती है, उसी पर है ये मूवी।


कहानी


ये कहानी है एक मराठी महिला की। जो बैंक में काम करती है और रोज की जिंदगी से लड़ती है। उसका पति सुशांत पिल्लई बेरोजगार है। जिसका बिजनेस डूब गया है, वो घर के छुटपट काम करता है और कैरम खेलता है। उसने कई लोगों से पैसा लिया हुआ है। जिससे परेशान उसकी पत्नी सरिता को होना होता है। सरिता और सुशांत की लाइफ समस्याओं से भरी हुई है जिससे उन दोनों के बीच लड़ाई होती ही रहती है। सरिता कई चीजों से परेशान है लेकिन सबसे ज्यादा परेशान है पैसे की कमी से और दूसरा सिंक से।


सिंक से बार-बार पानी किचन में भर जाता है। एक दिन सरिता उस पाइप को खोलकर देखती है तो पूरा किचन गंदे पानी से भर जाता है। गंदे पानी के साथ सरिता को मिलते हैं पानी में डले नोटों के बंडल। सरिता उसे अपने पास रख लेती है। अगले दिन चेक करती है तो फिर से कुछ बंडल मिलते हैं। सरिता दिन में काम करती और रात में बंडल के आने का इंतजार करती। ये पैसे कहां से आ रहे हैं इसकी भूमिका मूवी की शुरू में ही बना दी जाती है। जिससे सस्पेंस का लोचा रहता ही नहीं है। खूब सारा पैसा मिलने पर सरिता बहुत खुश होती है। पांच-पांच रुपए का की बचत करने वाली सरिता शादी के गिफ्ट में दो हजार रुपए देने की बात करने लगती है। घर में सब कुछ नया-नया आना लगता है। जब ये सब कुछ हो रहा था वो अक्टूबर 2016 था।

फिर आती है वो तारीख जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नोटबंदी लगा देते हैं। अब सरिता का सारा पैसा ब्लैकमनी हो जाता है। अब होना तो ये चाहिए था कि सरिता उन पैसों को बैंक में जमा करने की कोशिश करे। मगर ऐसा होता नहीं है, होता तो कुछ और ही है। अब आगे क्या होता है? सरिता उन पैसों का क्या करती है? ये सब आपको मूवी देखने पर पता चल जाएगा।


मूवी में दिखाया गया है कि नोटबंदी के बारें में लोग क्या सोचते हैं? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में लोग का क्या कहना है? हालांकि ये भी नहीं है कि नोटबंदी की आलोचना नहीं की गई है लेकिन वो आलोचना उतनी बुरी नहीं लगती। कुछ-कुछ सीन में नोटबंदी पर व्यंग्य करते दिखाया गया है। नोटबंदी के हालातों को मूवी में बखूबी से दिखाया गया है। चाहे वो बैंक में लगी लंबी लाइनें, नोट में माइक्रो चिप की बात और मध्यम वर्गीय की नोटबंदी से परेशानी। इसके अलावा मिडिल-क्लास की लाइफ को अनुराग कश्यप ने अच्छे-से दिखाया है। पति-पत्नी की खटपट, सब्जी के बढ़ते दाम, सिंक का जाम होना और पड़ोसियों की चुगलबाजी। इन सबको बहुत को रोचक तरीके से दिखाया है। ये सब खूबी इस मूवी को देखने के लिए काफी हैं।

किरदार


एक्टिंग की बात करें तो सरिता का रोल निभाया है सैयामी खैर ने। सैयामी इससे पहले मिर्जया और स्पेशल आॅप्स में भी काम किया था। सैयामी का रोल सबसे महत्वपूर्ण है, इसमें वो अच्छी भी लगती है। उनके डायलाॅग कम हैं लेकिन जब भी बोलती है प्रभाव डालता है। शैयामी के एक्सप्रैशन इस रोल में और जान डाल देते हैं। सरिता के सुशांत के रोल में हैं रोशन मैथ्यू। रोशन मैथ्यू मलयाली सिनेमा से आते हैं। उनका इस मूवी में बाॅलीवुड डेब्यू है। बेरोजगार पति के रोल में रोशन मैथ्यू अच्छे लगते हैं। इसके अलावा अमृता सुभाष, राजश्री देशपांडे, उपेन्द्र लिमये और आदित्य कुमार भी दिखते हैं। इन सभी को पहले किसी न किसी मूवी में देख चुके हैं।


5 जून 2020 को रिलीज हुई चोक्ड मूवी को लिखा है निहित ने। इसके डायरेक्टर हैं अनुराग कश्यप और म्यूजिक डायरेक्टर हैं कर्ष काले। अगर आपको अच्छी मूवी देखना पसंद है तो राजनीति को छोड़कर ये मूवी देख डालिए। अगर आप इन सबमें फंसे रहेंगे तो अच्छा कंटेंट से दूर ही रह जाएंगे।

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तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है। एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई ...