अक्सर मैंने न्यूज और शाॅर्ट-फिल्मों में देखा है कि नाॅर्थ ईस्ट के लोगों से देश के बड़े शहरों में खराब व्यवहार किया जाता है। जिस वजह से उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार तो उनके साथ मारपीट भी हो जाती है। मेरी ही तरह अगर आपको नहीं पता कि उनके साथ इन शहरों में कैसा व्यवहार होता है? किन परेशानियों का इन लोगों को सामना करना पड़ता है तो नेटफ्लिक्स पर आई ये मूवी आपको जरूर देखनी चाहिए। एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश को बनाने के बहाने एक बड़े शहर में नाॅर्थ ईस्ट के लोगों की जिंदगी को दिखाने की कोशिश की गई है।
ये कहानी है दिल्ली में रह रहे कुछ नार्थ-ईस्ट इंडियंस की। जो अपने दोस्त की शादी में एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश बनाना चाहते हैं, अखुनी। इन लोगों को डर है कि वे अखुनी बनाएंगे तो उसकी गंध सबके घर में जाएगी। इसलिए वे डिश को तब बनाते हैं जब सब आॅफिस चले जाते हैं लेकिन फिर भी पकड़े जाते हैं। अपने दोस्त की शादी को और खास बनाने के लिए वे किसी भी हालत में इस डिश को बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां भी बनाते हैं वहां इसकी गंध उनको रोक दे रही थी। ये मूवी उस एक दिन की कहानी है जो इन लोगों के लिए बहुत थकान और चिंता भरा होता है। एक समस्या खत्म होती नहीं है कि उनके सामने दूसरी परेशानी खड़ी हो जाती है। कभी गैस का खत्म होना, कभी पड़ोसियों की धमकी तो कभी आपस का ड्रामा। इन सबके बावजूद क्या वो अखुनी बना पाते हैं या फिर बिना अखुनी के ही शादी होती है? ये जानना है तो तो आपको ये मूवी देखनी होगी।
मूवी में एक सीन है जहां बेडोंग अपनी गर्लफ्रेंड को कहता है कि ये शहर नरक है, मैं यहां नहीं रहना चाहता। ये एक डायलाॅग दिल्ली में नाॅर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ बदतमीजी को बताने की कोशिश करता है। बेडोंग इसलिए भी इस शहर से नफरत करता है क्योंकि उसके बहुत पहले कुछ लोगों ने पीटा था। जब उसकी गर्लफ्रेंड को एक लड़का कुछ कहता है तो वो कहता है कि उसने नहीं सुना। शायद उसे खुद पर हुई घटना याद आ जाती है। इसके अलावा भी बहुत सारे सीन हैं जहां इन लोगों के साथ भेदभाव को दिखाया गया है। एक सीन में पड़ोसी इन लोगों को धमकाते हुए कहता है कि तुम लोगों को रूम ही नहीं देने चाहिए। मुनरिका में लोगों ने यही किया है। इन लोगों पर ये बड़े शहर अपनी बातों से अटैक करते हैं, मलाई, इसकी भी तो आंखें भी नहीं खुली, सब एक जैसे ही तो लगते हो आप।
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बड़े शहर के लोगों को ही गलत दिखाया गया है। मूवी में एक सीन है जब बेडोंग दिल्ली में रहने वाले शिव से कहता है, यहां से जाओ, इंडियंस। कुछ देर सन्नाटा रहता है और फिर दिल्ली का शिव दूसरे नाॅर्थ-ईस्ट दोस्त से कहता है, तुम लोग अपने आपको इंडियंस नहीं समझते क्या? ऐसा लगता है मूवी में ये सवाल सभी नार्थ-ईस्ट इंडियंस के लिए है। ये सीन मूवी का सबसे अच्छा दृश्य है। इन सबके अलावा एक्सोन दिल्ली में रह रहे नार्थ-ईस्ट के लोगों की दोस्ती को दिखाता है। कुछ-कुछ झगड़े और मनमुटाव तो हर रिश्ते में होते हैं। एक दोस्त के लिए वे उस डिश को बनाते हैं जो उनके लिए समस्या खड़ी कर सकती है। मूवी में प्रेम और ब्रेक अप को भी दिखाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा मूवी में नार्थ-ईस्ट के कल्चर को दिखाने की कोशिश की है। वहां के फूड, वहां की वेशभूषा, वहां की बोली और शादी कैसे होती है? ये भी दिखाने की कोशिश की गई है।
कहानी
ये कहानी है दिल्ली में रह रहे कुछ नार्थ-ईस्ट इंडियंस की। जो अपने दोस्त की शादी में एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश बनाना चाहते हैं, अखुनी। इन लोगों को डर है कि वे अखुनी बनाएंगे तो उसकी गंध सबके घर में जाएगी। इसलिए वे डिश को तब बनाते हैं जब सब आॅफिस चले जाते हैं लेकिन फिर भी पकड़े जाते हैं। अपने दोस्त की शादी को और खास बनाने के लिए वे किसी भी हालत में इस डिश को बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां भी बनाते हैं वहां इसकी गंध उनको रोक दे रही थी। ये मूवी उस एक दिन की कहानी है जो इन लोगों के लिए बहुत थकान और चिंता भरा होता है। एक समस्या खत्म होती नहीं है कि उनके सामने दूसरी परेशानी खड़ी हो जाती है। कभी गैस का खत्म होना, कभी पड़ोसियों की धमकी तो कभी आपस का ड्रामा। इन सबके बावजूद क्या वो अखुनी बना पाते हैं या फिर बिना अखुनी के ही शादी होती है? ये जानना है तो तो आपको ये मूवी देखनी होगी।
मूवी का एक सीन। |
मूवी में एक सीन है जहां बेडोंग अपनी गर्लफ्रेंड को कहता है कि ये शहर नरक है, मैं यहां नहीं रहना चाहता। ये एक डायलाॅग दिल्ली में नाॅर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ बदतमीजी को बताने की कोशिश करता है। बेडोंग इसलिए भी इस शहर से नफरत करता है क्योंकि उसके बहुत पहले कुछ लोगों ने पीटा था। जब उसकी गर्लफ्रेंड को एक लड़का कुछ कहता है तो वो कहता है कि उसने नहीं सुना। शायद उसे खुद पर हुई घटना याद आ जाती है। इसके अलावा भी बहुत सारे सीन हैं जहां इन लोगों के साथ भेदभाव को दिखाया गया है। एक सीन में पड़ोसी इन लोगों को धमकाते हुए कहता है कि तुम लोगों को रूम ही नहीं देने चाहिए। मुनरिका में लोगों ने यही किया है। इन लोगों पर ये बड़े शहर अपनी बातों से अटैक करते हैं, मलाई, इसकी भी तो आंखें भी नहीं खुली, सब एक जैसे ही तो लगते हो आप।
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बड़े शहर के लोगों को ही गलत दिखाया गया है। मूवी में एक सीन है जब बेडोंग दिल्ली में रहने वाले शिव से कहता है, यहां से जाओ, इंडियंस। कुछ देर सन्नाटा रहता है और फिर दिल्ली का शिव दूसरे नाॅर्थ-ईस्ट दोस्त से कहता है, तुम लोग अपने आपको इंडियंस नहीं समझते क्या? ऐसा लगता है मूवी में ये सवाल सभी नार्थ-ईस्ट इंडियंस के लिए है। ये सीन मूवी का सबसे अच्छा दृश्य है। इन सबके अलावा एक्सोन दिल्ली में रह रहे नार्थ-ईस्ट के लोगों की दोस्ती को दिखाता है। कुछ-कुछ झगड़े और मनमुटाव तो हर रिश्ते में होते हैं। एक दोस्त के लिए वे उस डिश को बनाते हैं जो उनके लिए समस्या खड़ी कर सकती है। मूवी में प्रेम और ब्रेक अप को भी दिखाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा मूवी में नार्थ-ईस्ट के कल्चर को दिखाने की कोशिश की है। वहां के फूड, वहां की वेशभूषा, वहां की बोली और शादी कैसे होती है? ये भी दिखाने की कोशिश की गई है।
किरदार
मूवी में ज्यादातर रोल खुद नार्थ-ईस्ट इंडियंस के ही किए हैं। चान्वी के रोल में दिखीं लिन लैशराम, बेंडोंग का किरदार निभाया है लानुआकुम ओ ने। नार्थ-ईस्ट के सभी कैरेक्टर में सिर्फ सयानी गुप्ता ही ऐसी ही हैं जो नार्थ-ईस्ट इंडियन नहीं है। सयानी गुप्ता इससे पहले फोर मोर शाॅट्स प्लीज बेब सीरीज में दिखाई जा चुकी हैं। सयानी गुप्ता ने इसमें उपासना के किरदार में हैं। उन्होंने इस रोल के लिए काफी मेहनत की है। इसमें वे अच्छी लग भी रही हैं। कैमरे के सामने आती हैं तो उनको देखकर अच्छा लगता है। इसके अलावा मकान मालिकन के किरदार में रहीं डाॅली आहलूवालिया और उनके दामाद के रोल में दिखे, विनय पाठक। जो सीन पर आते हैं तो बस हंसाते हैं। इसके अलावा आदिन हुसैन कुछ-कुछ सीन में एक बिस्तर पर बैठे दिखाई देते हैं लेकिन उनका डायलाॅग एक भी नहीं है।
एक्सोन एक काॅमेडी ड्रामा मूवी है। जिसके डायरेक्टर हैं निकोलस खारकोंगोर ने। निकोलस ने बहुत सही मुद्दे को सिनेमा में दिखाने की कोशिश की है। डायरेक्टर ने अच्छा और सुखद अंत करने की कोशिश नहीं की। वो कमियां और परेशानियां वैसी ही रहने दीं जैसे कि शुरू में दिखाई गई हैं। मूवी में कुछ-कुछ जगहों पर स्थानीय संगीत भी सुनाई देता है। उनके बोल समझ नहीं आते लेकिन सुनकर अच्छा लगता है। इसके प्रोड्यूसर हैं सिद्धार्थ आनंद कुमार और विक्रम मेहरा। आपको ये मूवी नेटफ्लिक्स पर जरूर देखनी चाहिए।
Great job :)
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