Wednesday, August 5, 2020

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है।

एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई लेकिन विदेश जाकर फेमस हो गई। इस झटपल हल करने वाले दिमाग की वजह से उसे ह्यूमन कंप्यूटर कहा जाना लगा। ये कहानी है महान गणितज्ञ शकुंतला देवी की। इसी नाम से ये मूवी भी है। कहानी सिर्फ इतनी-सी होती तो अच्छा रहता लेकिन ये इससे बढ़कर है। ये कहानी है एक लड़की की जो अपनी मां जैसी नहीं बनना चाहती क्योंकि वो अपने पति के सामने कुछ नहीं बोलती और जब उसकी बेटी होती है तो वो उसके जैसी नहीं बनना चाहती। कुल मिलाकर ये कहानी महान गणितज्ञ शकुंतला देवी की नहीं मां शकुंतला और अनुपमा की है।


ये वैसी बायोपिक नहीं है जैसी हम अब तक देखते आए हैं। इसमें न कहीं कोई संघर्ष है और न ही कोई बहुत बड़ा दुख है। एक जीनियस लड़की है जिसे नहीं पता कि वो इन मुश्किल सवालों को कैसे हल कर लेती है? शकुंतला देवी के बारे मंे हमने सामान्य ज्ञान की किताब में ही पढ़ा है। इससे ज्यादा हम उनके बारे में जानते नहीं है। ऐसे में मूवी इस प्रकार की बननी चाहिए थी जो शकुंतला देवी की पूरी लाइफ को बता सके। अगर ये मूवी महान गणितज्ञ शकुंतला देवी पर बेस्ड न होती और किसी मां-बेटी के रिश्ते पर होती तब तो इसको अच्छा कहा जा सकता था। लेकिन इस मूवी को जिस लिए देखा गया, उसमें निराश करती है ये मूवी।

कहानी


शकुंतला देवी एक दिन खेलते-खेलते एक मुश्किल सवाल हल कर देती। उसके पिता को अपने बेटी के इस टैलेंट के बारे में पता चलता है तो वो मैथ्स शो करवाने लगते हैं। जो भी पैसे आते उससे घर चलता। ऐसे ही एक दिन वो विदेश पहुंच जाती है और वहां भी यही मैथ्स शो करने लगती है। वहीं उसे एक लड़के से प्यार हो जाता है और कलकत्ता लौट आती है। कुछ सालों तक वो अपने गणित से दूर रहती है और फिर से एक दिन अपने गणित के लिए परिवार से दूर चली जाती है। जब उसे लगता है कि उसकी बेटी उसे कम और पिता को ज्यादा प्यार करती है। तो उसे अपने साथ शोज में ले जाने लगती है।  


मां-बेटी साथ तो रहते हैं लेकिन बेटी मां से प्यार नहीं करती। वो उसे हमेशा अपने साथ ही रखना चाहती है जबकि अनुपमा ऐसा नहीं चाहती। उसके बाद क्या होता है? बेटी-मां से दूर चली जाती है या वो उसके साथ ही रहती है? इन सारे बातों को जानने के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। लेकिन फिर भी ये कई बातें जो फिल्म की कमजोरी दिखाती है। सबसे पहले तो मूवी फोकस नहीं। एक गणितज्ञ पर मूवी बन रही है तो मूवी उसी पर होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं है।

मूवी में दिखाया गया है कि शकुंतला देवी बेफ्रिक और जिंदादिल हैं। जो अपनी खुशी और सपने के लिए कुछ भी कर सकती हैं। वो कहती मूवी में कहती भी है औरत वही करना चाहिए जो उसका मन करे। लेकिन जब उसकी बेटी की बात आती है तो वो उसे उसका मन का नहीं करने देती। वो उसे अपने साथ ही रखना चाहती। कई जगह लगता है कि शकुंतला देवी का ये बेफ्रिकपन अच्छा है लेकिन कई बार ये बहुत बेकार लगता है। पूरी मूवी में बहुत कम पल या सीन हैं जिनको कहा जा सके कि ये बहुत अच्छे हैं। आखिरी के जो सीन हैं वो मुझे बहुत अच्छे लगे। आप जब देखेंगे तो शायद इमोशनल भी कर दें।

किरदार


शकुंतला देवी के किरदार में हैं विद्या बालन। विद्या बालन दिखती अच्छी हैं, एक्टिंग भी अच्छी है लेकिन जिस प्रकार का ये रोल था वैसी अदाकारी डायरेयक्टर करवा नहीं सके। शकुंतला देवी की बेटी का रोल निभाया है, सान्या मल्होत्रा ने। साल्या मल्होत्रा कहीं बहुत सही लगती हैं तो कहीं कमजोर दिखाई पड़ती हैं। विद्या बालन के आगे वो कमतर ही नजर आती हैं। इसके अलावा अमित साध भी सही लगते हैं। जिशु सेनगुप्ता काफी प्रभाव छोड़ते हैं। 


मूवी के डायरेक्टर हैं अनु मेनन। स्क्रीनप्ले को लिखा है अनु मेनन और नयनिका महतानी ने। कहानी कमजोर है। अनु मेनन को इसके लिए और मेहनत करने की जरूरत है। अगर मूवी किसी प्रकार से अच्छी कही जाए तो एक महिला को कैसा होना चाहिए? बेफिक्र, घुमक्कड़ और जिंदादिल। सबसे जरूरी बात जरूरी नहीं है कि औरतों को पुरूषों की जरूरत हो। वो अकेले भी रह सकती हैं और जिंदगी बहुत अच्छे से जी सकती हैं। अगर आपने अब तक ये मूवी नहीं देखी है तो अमेजन प्राइम पर 31 जुलाई 2020 को रिलीज हुई है, देख डालिए।

Saturday, July 25, 2020

दिल बेचाराः हीरो नहीं,एक एक्टर की अदाकारी का आखिरी नमूना है ये मूवी

सोशल मीडिया पर एक बार फिर से सुशांत सिंह राजपूत को याद किया जा रहा है। वजह है उनकी आखिरी मूवी, दिल बेचारा। 24 जुलाई 2020 को ये मूवी हाॅटस्टार पर रिलीज हो गई। अब तक बहुत सारे लोगों ने ये मूवी देख ली होगी। मूवी बहुत अच्छी भी नहीं है और बहुत खराब भी नहीं। मूवी में बात वही है जो हम बहुत सारी फिल्मों में पहले भी देख चुके हैं। फिर भी ये मूवी देखी जा रही है सिर्फ एक एक्टर के लिए। दिल बेचारा सुशांत सिंह राजपूत की अदाकारी का आखिरी नमूना है।


कहानी


झारखंड के जमेशदपुर में शुरू होती है ये कहानी। एक लड़की है किजी बासु। जिसे थाॅयरेड कैंसर है, उसके साथ हमेशा सिलेंडर रहता है। जिसे उसने नाम भी दिया है, पुष्पेन्दर। उदास रहती है, कब्रिस्तान में मरने वाले के रिश्तेदारों से गले मिलती और एक सिंगर की बहुत बड़ी फैन है जिसने अपना आखिरी गाना अधूरा छोड़ दिया। फिर अचानक एक दिन उसकी जिंदगी में एंट्री होती है खुशमिजाज मैनी की, मैनी यानी कि इमैन्युअल राजकुमार जूनियर। मैनी को भी कैंसर है और उसका एक पैर कृत्रिम है। फिर भी वो खुश रहता है, दूसरों को खुश करता है, खासकर किजी को।


किजी को शुरू में मैनी सही नहीं लगता लेकिन बाद में वो उसके करीब आ जाती है। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। किजी का सपना है कि वो उस सिंगर से एक बार मिले। इसके लिए किजी और मैनी पेरिस भी जाते हैं। दोनों की जिंदगी को अच्छी चल रही थी। मूवी में एक डायलाॅग है ‘कैंसर को खुशी पसंद नहीं है’। बस फिर ऐसा ही कुछ होता है जो फिल्म को क्लाइमेक्स तक ले जाता है। कैंसर के बीच प्यार, मैनी की जिंदादिली और दर्द के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। जिन्होंने देखी है उनको तो पता ही होगा।

मूवी के बारे में


कहा जा रहा है कि दिल बेचारा हाॅलीवुड मूवी ‘द् फाॅल्ट ऑफ अवर स्टार्स’ की रीमेक है। मूवी में कई सीन बहुत अच्छे लगते हैं तो किसी में कमी साफ नजर आती है। मूवी में कई डायलाॅग हैं जो जिंदगी की फिलाॅसफी से जुड़े हुए हैं। जैसे कि जन्म कब लेना है, मरना कब है, हम डिसाइड नहीं कर सकते लेकिन कैसे जीना है हम डिसाइड कर सकते हैं। ये डायलाॅग याद तो नहीं रहने वाले हैं लेकिन सुनने में अच्छे लगते हैं। मूवी में कमी अगर कहीं है तो डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की है। जो कहानी को सही ढंग से नहीं कह पाए। इसके अलावा शशांक खेतान को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जो मूवी के स्क्रीनप्ले राइटर हैं। मूवी में शायद ही कोई सीन हो जो याद रखा जाए। बस आखिरी में मूवी थोड़ी इमोशनल है जो शायद आपकी आंखों को नम कर दे।


मूवी में अभिनय की कमी कहीं नहीं दिखाई देती है। मूवी में किजी वासु का किरदान निभाने वाली संजना सांघी ने अच्छी एक्टिंग की है। इससे पहले वे फुकरे रिर्टन्स और हिन्दी मीडियम में देखी जा चुकी हैं। इस मूवी में संजना सांघी ने अपने अभिनय को बेहतरीन ढंग से निभाया है। मूवी में सुशांत सिंह के अभिनय को लाजवाब तो नहीं लेकिन अच्छा कहा जा सकता है। इसके अलावा मूवी में सास्वत चटर्जी और स्वास्तिका मुखर्जी को देखना अच्छा लगता है। मूवी में दोनों ने किजी बासु के माता-पिता का रोल निभाया है। इसके अलावा साहिल वैद हैं जिनको बद्री की दुल्हनियां में भी देखा जा चुका है। वो इसमें भी वैसे ही दिखे, बस इसमें अंधे हो जाते हैं। मूवी में एक सीन में सैफ अली खान भी हैं। इसके अलावा मूवी में अगर कुछ अच्छा है तो वो है इसका म्यूजिक। मूवी आने से पहले ही लोगों ने म्यूजिक को काफी सराहा। फिल्म के गानों को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। ए.आर.रहमान, अरिजीत सिंह, श्रेया घोषाल और सुनिधि चैहान जैसे गायकों ने गानों को गाया है।

दिल बेचारा कोई बहुत अच्छी मूवी नहीं है जिसे सालों तक याद रखा जाएगा। मूवी के ट्रेलर के आने के बाद डर था कि बहुत बुरी मूवी न हो लेकिन अच्छी बात है कि उतनी बुरी नहीं है। ये तो बस सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी मूवी है, जिसे हर कोई देखना चाहता है। इससे भी बड़ी बात ये ओटीटी प्लेटफाॅर्म हाॅटस्टार पर रिलीज हुई है जिसकी वजह से हर कोई देख रहा है। अगर मूवी थिएटर में लगती हो शायद इतने लोग इस मूवी को नहीं देखते। यही वजह है कि ये मूवी हिट बन गई। सुशांत सिंह राजपूत एक हंसमुख एक्टर के तौर पर जाने गए। वैसे ही कुछ वे इस मूवी में भी दिखाई दिए। इस मूवी को सुशांत सिंह को याद करने के लिए श्रद्धांजलि के तौर पर देखना चाहिए।

Thursday, June 18, 2020

एक्सपेडिशन हैप्पीनेसः अगर आपको घूमना पसंद है तो इस मूवी से प्यार हो जाएगा

ऐसी बहुत कम मूवी हैं जो पूरी तरह से ट्रेवलिंग पर हैं या हो सकता है मैंने बहुत कम देखी हैं। इसके बावजूद अगर आप एक्सपेडिशन हैप्पीनेस देखेंगे तो इससे प्यार हो जाएगा। वैसे ये मूवी नहीं है एक डाक्यूमेंट्री है या फिर कह सकते हैं ट्रेवल ब्लाॅग है। ये डाक्यूमेंट्री एक रोड ट्रिप की है और इस रोड ट्रिप में वो सब है जो हर घुमक्कड़ करना चाहता है। अगर आपको घूमने से थोड़ा भी प्यार है तो इसको जरूर देखिए। 96 मिनट की ये ट्रेवल डाक्यूमेंट्री किसी मूवी से कम नहीं है।


क्या है इसमें?


ये डाक्यूमेंट्री है दो जर्मन कपल की। जो शुरू के चंद मिनटों में अपने बारे में और साथ मिलने के बारे में बताते हैं। फेलिक्स एक सिनेमेटोग्राफर है जिसे घूमना बहुत पसंद है और सेलिमा एक सिंगर है जो अपने गाने खुद लिखती है। दोनों एक ट्रिप पर मिले और अब दोनों एक और ट्रिप का प्लान बनाते हैं। दोनों एक रोड ट्रिप पर जाने की की सोचते हैं। वे आनलाइन एक स्कूल बस लेते हैं और फिर उसका कायापलट कर देते हैं। तीन महीने उस पर काम करते हैं और उसे घर बना देते हैं। उसके बाद चल पड़ते हैं अपनी रोड ट्रिप पर। फेलिक्स और सेलिमा के अलावा उनके साथ एक कुत्ता होता है। जिसका नाम है रूडी।


इस बस में वो सब होता है जो एक बड़े-से घर में होता है, वाशरूम, लिविंग रूम और किचन। वो लाइट के लिए सोलर सिस्टम और जनरेटर साथ रखते हैं। पानी के लिए वाॅटर टैंक जैसी जरूरी चीजें साथ में होती हैं। अपनी रोड ट्रिप में कनाडा, अलास्का, नाॅर्थ अमेरिका, वेस्ट कोस्ट और मैक्सिको तक जाते हैं। सात महीने की इस लंबी यात्रा में वे पहाड़, समुद्र, नदी, शहर, गांव, जंगल, ग्लेशियर सब कुछ देखते हैं। जब तक सब कुछ सही चल रहा होता है तो लगता है कि घुमक्कड़ी इतनी आसान नहीं होती है। फिर जब कुछ परेशानी आती हैं, समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो घुमक्कड़ी में होना स्वभाविक है। मगर जब वो प्रकृति के बीच होते हैं तो सारी परेशानियों को भूल जाते हैं। एक जगह फेलिक्स कहते भी हैं जब सुबह-सुबह उठो, दरवाजा खोलो तो सामने नदी, पहाड़, झरने देखते हैं। तब जो एहसास होता है वहीं एक्सपेडिशन हैप्पीनेस है।

घुमक्कड़ कपल।

डाक्यूमेंट्री का पहले हाफ में सिर्फ घुमक्कड़ी ही घुमक्कड़ी है और दूसरे हाफ में घुमक्कड़ी के साथ-साथ स्थानीय लोगों के साथ बातचीत, स्ट्रीट फूड भी है। जहां-जहां पहुंचते हैं फेलिक्स और सेलिमा उस जगह के बारे में बताते हैं, कहां जाना है, क्या करने वाले हैं, सब कुछ बताते हैं। ये सब वैसा ही है जैसा एक ट्रेवल ब्लाॅगर अपने छोटे-से ब्लाॅग में बताता है। बस ये बहुत लंबी यात्रा का लंबा डाक्यूमेंट है। कैमरे का काम दोनों लोगों ने किया है। बहुत सारे शाॅट ड्रोन के हैं, कुछ गोप्रो के हैं और कुछ शाॅट कैमरे के हैं। फेलिक्स प्रोफेशनल सिनमेटोग्राफर हैं इसलिए कैमरे का वर्क बहुत अच्छा है। ये डाक्यूमेंट्री अच्छी लगती है क्योंकि नजारे इतने अच्छे तरीके से शूट किए हैं कि देखकर प्यार हो जाता है। कभी पहाड़, कभी फाॅल्स, कभी पहाड़ों के बीच बस, तो कभी सूरज का डूबना तो कभी सूरज का उगना।

ये नजारे।

जब बस चल रही होती है और खूबसूरत नजारे दिखाई दे रहे होते हैं। तब बैकग्राउंड में सुनाई दे रहे होते हैं कुछ गाने और म्यूजिक। जिसको लिखा और गाया है खुद सेलिमा ने। इनको सेलिमा अपनी यात्रा के दौरान ही लिखती हैं। वो अंग्रेजी गाने समझ तो नहीं आते लेकिन कानों को अच्छे लगते हैं, म्यूजिक साॅफ्ट है। दोनों घूमने के बारे में बहुत कुछ बताते हैं, जिसको सुनकर आपका भी घूमने का मन करने लगेगा। सोलो ट्रेवलिंग और दो लोगों के घूमने में क्या खास अंतर है? कौन-सी ट्रेवलिंग ज्यादा अच्छी है। वीजा मिलने में क्या-क्या समस्या आती है ये भी ये डाक्यूमेंट्री बताती है। दुनिया में अच्छे लोग बहुत हैं, डाक्यूमेंट्री में ये भी देखने को मिलता है। अगर आपको उस जगह की भाषा नहीं भी आती हो तब भी घूमने में समस्या नहीं आती है।

घर जैसी बस।

इन अच्छाईयों के बावजूद मुझे इस डाक्यूमेंट्री में कुछ कमियां नजर आईं। पहला तो घूमने की तैयारी बस को तैयार करने के अलावा और क्या किया? ये बिल्कुल नहीं बताया गया। बजट के बारे में डाक्यूमेंट्री में कुछ भी नहीं बताया जाता। इसके अलावा एक और चीज जो मुझे लगा मैं नहीं कर सकता वो है, ये लक्जीरियस। ये रोड  पूरी तरह से आरामदायक और पैसे वाली रही। इन सबको छोड़ दिया जाए तो ये डाक्यूमेंट्री बहुत अच्छी है। दोनों ने कमाल का काम किया है, अपनी यात्रा को कहानी की तरह बताया है। येे डाक्यूमेंट्री अंग्रेजी में है और नेटफ्लिक्स पर मिल जाएगी। अगर आप कुछ बेहतरीन और अलग देखनी की सोच रहे हैं एक्सपेडिशन हैप्पीनेस देख डालिए। ये आपके चेहरे पर पक्का खुशी ले आएगी।

Tuesday, June 16, 2020

एक्सोनः नॉर्थ ईस्ट फूड, दोस्ती और भेदभाव को दिखाती है ये मूवी

अक्सर मैंने न्यूज और शाॅर्ट-फिल्मों में देखा है कि नाॅर्थ ईस्ट के लोगों से देश के बड़े शहरों में खराब व्यवहार किया जाता है। जिस वजह से उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार तो उनके साथ मारपीट भी हो जाती है। मेरी ही तरह अगर आपको नहीं पता कि उनके साथ इन शहरों में कैसा व्यवहार होता है? किन परेशानियों का इन लोगों को सामना करना पड़ता है तो नेटफ्लिक्स पर आई ये मूवी आपको जरूर देखनी चाहिए। एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश को बनाने के बहाने एक बड़े शहर में नाॅर्थ ईस्ट के लोगों की जिंदगी को दिखाने की कोशिश की गई है।


कहानी


ये कहानी है दिल्ली में रह रहे कुछ नार्थ-ईस्ट इंडियंस की। जो अपने दोस्त की शादी में एक नाॅर्थ-ईस्ट डिश बनाना चाहते हैं, अखुनी। इन लोगों को डर है कि वे अखुनी बनाएंगे तो उसकी गंध सबके घर में जाएगी। इसलिए वे डिश को तब बनाते हैं जब सब आॅफिस चले जाते हैं लेकिन फिर भी पकड़े जाते हैं। अपने दोस्त की शादी को और खास बनाने के लिए वे किसी भी हालत में इस डिश को बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां भी बनाते हैं वहां इसकी गंध उनको रोक दे रही थी। ये मूवी उस एक दिन की कहानी है जो इन लोगों के लिए बहुत थकान और चिंता भरा होता है। एक समस्या खत्म होती नहीं है कि उनके सामने दूसरी परेशानी खड़ी हो जाती है। कभी गैस का खत्म होना, कभी पड़ोसियों की धमकी तो कभी आपस का ड्रामा। इन सबके बावजूद क्या वो अखुनी बना पाते हैं या फिर बिना अखुनी के ही शादी होती है? ये जानना है तो तो आपको ये मूवी देखनी होगी।

मूवी का एक सीन।

मूवी में एक सीन है जहां बेडोंग अपनी गर्लफ्रेंड को कहता है कि ये शहर नरक है, मैं यहां नहीं रहना चाहता। ये एक डायलाॅग दिल्ली में नाॅर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ बदतमीजी को बताने की कोशिश करता है। बेडोंग इसलिए भी इस शहर से नफरत करता है क्योंकि उसके बहुत पहले कुछ लोगों ने पीटा था। जब उसकी गर्लफ्रेंड को एक लड़का कुछ कहता है तो वो कहता है कि उसने नहीं सुना। शायद उसे खुद पर हुई घटना याद आ जाती है। इसके अलावा भी बहुत सारे सीन हैं जहां इन लोगों के साथ भेदभाव को दिखाया गया है। एक सीन में पड़ोसी इन लोगों को धमकाते हुए कहता है कि तुम लोगों को रूम ही नहीं देने चाहिए। मुनरिका में लोगों ने यही किया है। इन लोगों पर ये बड़े शहर अपनी बातों से अटैक करते हैं, मलाई, इसकी भी तो आंखें भी नहीं खुली, सब एक जैसे ही तो लगते हो आप।

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बड़े शहर के लोगों को ही गलत दिखाया गया है। मूवी में एक सीन है जब बेडोंग दिल्ली में रहने वाले शिव से कहता है, यहां से जाओ, इंडियंस। कुछ देर सन्नाटा रहता है और फिर दिल्ली का शिव दूसरे नाॅर्थ-ईस्ट दोस्त से कहता है, तुम लोग अपने आपको इंडियंस नहीं समझते क्या? ऐसा लगता है मूवी में ये सवाल सभी नार्थ-ईस्ट इंडियंस के लिए है। ये सीन मूवी का सबसे अच्छा दृश्य है।  इन सबके अलावा एक्सोन दिल्ली में रह रहे नार्थ-ईस्ट के लोगों की दोस्ती को दिखाता है। कुछ-कुछ झगड़े और मनमुटाव तो हर रिश्ते में होते हैं। एक दोस्त के लिए वे उस डिश को बनाते हैं जो उनके लिए समस्या खड़ी कर सकती है। मूवी में प्रेम और ब्रेक अप को भी दिखाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा मूवी में नार्थ-ईस्ट के कल्चर को दिखाने की कोशिश की है। वहां के फूड, वहां की वेशभूषा, वहां की बोली और शादी कैसे होती है? ये भी दिखाने की कोशिश की गई है।


किरदार


मूवी में ज्यादातर रोल खुद नार्थ-ईस्ट इंडियंस के ही किए हैं। चान्वी के रोल में दिखीं लिन लैशराम, बेंडोंग का किरदार निभाया है लानुआकुम ओ ने। नार्थ-ईस्ट के सभी कैरेक्टर में सिर्फ सयानी गुप्ता ही ऐसी ही हैं जो नार्थ-ईस्ट इंडियन नहीं है। सयानी गुप्ता इससे पहले फोर मोर शाॅट्स प्लीज बेब सीरीज में दिखाई जा चुकी हैं। सयानी गुप्ता ने इसमें उपासना के किरदार में हैं। उन्होंने इस रोल के लिए काफी मेहनत की है। इसमें वे अच्छी लग भी रही हैं। कैमरे के सामने आती हैं तो उनको देखकर अच्छा लगता है। इसके अलावा मकान मालिकन के किरदार में रहीं डाॅली आहलूवालिया और उनके दामाद के रोल में दिखे, विनय पाठक। जो सीन पर आते हैं तो बस हंसाते हैं। इसके अलावा आदिन हुसैन कुछ-कुछ सीन में एक बिस्तर पर बैठे दिखाई देते हैं लेकिन उनका डायलाॅग एक भी नहीं है।


एक्सोन एक काॅमेडी ड्रामा मूवी है। जिसके डायरेक्टर हैं निकोलस खारकोंगोर ने। निकोलस ने बहुत सही मुद्दे को सिनेमा में दिखाने की कोशिश की है। डायरेक्टर ने अच्छा और सुखद अंत करने की कोशिश नहीं की। वो कमियां और परेशानियां वैसी ही रहने दीं जैसे कि शुरू में दिखाई गई हैं। मूवी में कुछ-कुछ जगहों पर स्थानीय संगीत भी सुनाई देता है। उनके बोल समझ नहीं आते लेकिन सुनकर अच्छा लगता है। इसके प्रोड्यूसर हैं सिद्धार्थ आनंद कुमार और विक्रम मेहरा। आपको ये मूवी नेटफ्लिक्स पर जरूर देखनी चाहिए।

Monday, June 8, 2020

चोक्ड-पैसा बोलता हैः नोटबंदी पर नहीं है ये मूवी, वो तो महज एक हिस्सा है

अनुराग कश्यप की नेटफ्लिक्स पर एक नई मूवी आई है, चोक्ड-पैसा बोलता है। सबको लग रहा है कि ये मूवी नोटबंदी और सरकार की आलोचना पर बनी है। जब किसी मूवी के बारे में पहले से राय बनने लगती है तो उसके हिट होने के चांस बढ़ जाते हैं। इस मूवी का जिस तरह से एजेंडा बना है उससे अनुराग कश्यप खुश ही होंगे। नोटबंदी मूवी का महज एक हिस्सा है लेकिन उसका होना भी बहुत जरूरी है। ये कहानी तो है रिश्तों के चोक्ड होने की, ये कहानी है सपनों के चोक्ड होने की और ये कहानी है रोज की जिंदगी के चोक्ड होने की। अचानक पैसा आने से आम आदमी की चोक्ड जिंदगी कैसी हो जाती है, उसी पर है ये मूवी।


कहानी


ये कहानी है एक मराठी महिला की। जो बैंक में काम करती है और रोज की जिंदगी से लड़ती है। उसका पति सुशांत पिल्लई बेरोजगार है। जिसका बिजनेस डूब गया है, वो घर के छुटपट काम करता है और कैरम खेलता है। उसने कई लोगों से पैसा लिया हुआ है। जिससे परेशान उसकी पत्नी सरिता को होना होता है। सरिता और सुशांत की लाइफ समस्याओं से भरी हुई है जिससे उन दोनों के बीच लड़ाई होती ही रहती है। सरिता कई चीजों से परेशान है लेकिन सबसे ज्यादा परेशान है पैसे की कमी से और दूसरा सिंक से।


सिंक से बार-बार पानी किचन में भर जाता है। एक दिन सरिता उस पाइप को खोलकर देखती है तो पूरा किचन गंदे पानी से भर जाता है। गंदे पानी के साथ सरिता को मिलते हैं पानी में डले नोटों के बंडल। सरिता उसे अपने पास रख लेती है। अगले दिन चेक करती है तो फिर से कुछ बंडल मिलते हैं। सरिता दिन में काम करती और रात में बंडल के आने का इंतजार करती। ये पैसे कहां से आ रहे हैं इसकी भूमिका मूवी की शुरू में ही बना दी जाती है। जिससे सस्पेंस का लोचा रहता ही नहीं है। खूब सारा पैसा मिलने पर सरिता बहुत खुश होती है। पांच-पांच रुपए का की बचत करने वाली सरिता शादी के गिफ्ट में दो हजार रुपए देने की बात करने लगती है। घर में सब कुछ नया-नया आना लगता है। जब ये सब कुछ हो रहा था वो अक्टूबर 2016 था।

फिर आती है वो तारीख जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नोटबंदी लगा देते हैं। अब सरिता का सारा पैसा ब्लैकमनी हो जाता है। अब होना तो ये चाहिए था कि सरिता उन पैसों को बैंक में जमा करने की कोशिश करे। मगर ऐसा होता नहीं है, होता तो कुछ और ही है। अब आगे क्या होता है? सरिता उन पैसों का क्या करती है? ये सब आपको मूवी देखने पर पता चल जाएगा।


मूवी में दिखाया गया है कि नोटबंदी के बारें में लोग क्या सोचते हैं? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में लोग का क्या कहना है? हालांकि ये भी नहीं है कि नोटबंदी की आलोचना नहीं की गई है लेकिन वो आलोचना उतनी बुरी नहीं लगती। कुछ-कुछ सीन में नोटबंदी पर व्यंग्य करते दिखाया गया है। नोटबंदी के हालातों को मूवी में बखूबी से दिखाया गया है। चाहे वो बैंक में लगी लंबी लाइनें, नोट में माइक्रो चिप की बात और मध्यम वर्गीय की नोटबंदी से परेशानी। इसके अलावा मिडिल-क्लास की लाइफ को अनुराग कश्यप ने अच्छे-से दिखाया है। पति-पत्नी की खटपट, सब्जी के बढ़ते दाम, सिंक का जाम होना और पड़ोसियों की चुगलबाजी। इन सबको बहुत को रोचक तरीके से दिखाया है। ये सब खूबी इस मूवी को देखने के लिए काफी हैं।

किरदार


एक्टिंग की बात करें तो सरिता का रोल निभाया है सैयामी खैर ने। सैयामी इससे पहले मिर्जया और स्पेशल आॅप्स में भी काम किया था। सैयामी का रोल सबसे महत्वपूर्ण है, इसमें वो अच्छी भी लगती है। उनके डायलाॅग कम हैं लेकिन जब भी बोलती है प्रभाव डालता है। शैयामी के एक्सप्रैशन इस रोल में और जान डाल देते हैं। सरिता के सुशांत के रोल में हैं रोशन मैथ्यू। रोशन मैथ्यू मलयाली सिनेमा से आते हैं। उनका इस मूवी में बाॅलीवुड डेब्यू है। बेरोजगार पति के रोल में रोशन मैथ्यू अच्छे लगते हैं। इसके अलावा अमृता सुभाष, राजश्री देशपांडे, उपेन्द्र लिमये और आदित्य कुमार भी दिखते हैं। इन सभी को पहले किसी न किसी मूवी में देख चुके हैं।


5 जून 2020 को रिलीज हुई चोक्ड मूवी को लिखा है निहित ने। इसके डायरेक्टर हैं अनुराग कश्यप और म्यूजिक डायरेक्टर हैं कर्ष काले। अगर आपको अच्छी मूवी देखना पसंद है तो राजनीति को छोड़कर ये मूवी देख डालिए। अगर आप इन सबमें फंसे रहेंगे तो अच्छा कंटेंट से दूर ही रह जाएंगे।

Saturday, May 30, 2020

बेतालः डर का नामो-निशान नहीं है इस वेब सीरीज में।

सुरंग के बाहर कदम संभालकर रखना, उसकी नींद में कोई अड़चन न आएबेताल के श्राप ने उन्हें नष्ट कर दिया है और जब वो जागेंगे तो भूखे होंगे।

इसी संदेश के साथ शुरू होती है नेटफ्लिक्स पर आई वेब सीरीज, बेताल। बेताल वैसे तो हाॅरर वेब सीरीज है लेकिन जब आप देखेंगे तो निराश ही होंगे। पता नहीं क्यों भारतीय सिनेमा हाॅरर के मामले में सफल नहीं हो पाता है? हाॅरर के नाम पर कहानी जंगल, भूतिया हवेली और पुराने किस्सों में सिमट कर रह जाती है। बेताल सीरीज भी डराने में नाकाम रही और कहानी भी ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाती है।

कहानी


ये कहानी है छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी गांव निलजा की। जहां कांट्रेक्टर अजय मुदलावन नेशनल हाइवे बना रहा है। हाइवे के बीच में एक बंद सुरंग आ जाती है जिसको मुदलावन खोलना चाहता है। गांव वाले इसका विरोध कर रहे हैं। गांव वालों का मानना है कि ऐसा करने से बहुत बड़ा संकट आ जाएगा। सुरंग को खुलवाने के लिए अजय मुदलावन स्पेशल फोर्स सीआईपीडी की बाज स्क्वाड की लीडर त्यागी से बात करता है। त्यागी अजय मुदलावन से पैसे लेकर ये काम करती हैं। त्यागी अपनी फोर्स को बताती है कि यहां के लोग नक्सली हैं और वे विकास नहीं होने देना चाहते हैं।


बाज स्क्वाड को लीड करते हैं विक्रम सिरोही। विक्रम सिरोही जो त्यागी मैम जैसा बनना चाहता है। उसे एक आॅपरेशन बार-बार याद आता है जब उसने एक मासूम की जान ले ली थी। बाज स्क्वाड उस गांव को खाली करा देती है और सुरंग के बाहर जो खड़े रहते हैं उन पर फोर्स हमला कर देती है। उसके बाद सुरंग को खोल दिया जाता है। यहीं से दिक्कत शुरू हो जाती है। जो भी सुरंग में जाता है मारा जाता है या घायल हो जाता है। उसमें से कुछ शैतान निकलते हैं जो 17वीं शताब्दी की बंदूकों से गोली चलाते हैं। सबको लगता है कि ये नक्सली हैं। उनसे बचकर वे एक बड़े-से घर में छिप जाते हैं। यहां उनको सुबह तक का इंतजार करना है। उस एक रात में क्या-क्या होता है? सिरोही उन शैतानों से बचे हुए लोगों को बचा पाता है या नहीं? उन शैतानों को सिरोही कैसे खत्म करता है? ये सब जानने के लिए आपको ये वेब सीरीज देखनी होगी।

इतना जानकर आपको ये तो समझ आ ही गया होगा कि कहानी का प्लाॅट कमजोर है। वेब सीरीज में अगर कुछ अच्छा है तो थोड़ा लुक। जिससे थोड़ा-थोड़ा हाॅलीवुड वाला फील आता है। चाहे वो राक्षस को जिस तरह से दिखाया हो या रात वाला सीन। ये सब कुछ देखने में अच्छा लगता है। मगर डराने के मामले में ये वेब सीरीज पूरी तरह से नाकाम रही है। चाहे फिर पुरानी हवेली दिखाई हो, डरावना जंगल दिखाने की कोशिश की हो, शैतान के काटने से उसके जैसा ही बनने की कहानी हो या फिर अंग्रेजों के शैतान बनने की बात हो। इतना सब कुछ दिखाने के बावजूद ऐसे मौके कम ही आएंगे जब आप डर जाएंगे।


कुछ-कुछ जगह लाॅजिक समझ नहीं आता है जैसे कि वो कुछ लोगों को काटता है और कुछ के दिमाग पर असर डालता है। हद तो तब हो जाती है जब अजय मुदलावन शैतान से एक डील करता है और शैतान मान भी जाता है। फिर ये कि ठेकेदार फोर्स से ऐसे बात करता है जैसे वो ही इनका लीडर हो और वो मान भी लेते हैं। मतलब कहानी में कभी भी कुछ भी दिखा दिया गया है। यही सब इस वेब सीरीज को खराब बनाते हैं।

किरदार

एक्टिंग की बात करें तो विक्रम सिरोही का रोल निभाया है विनीत कुमार ने। विनीत कुमार इससे पहले गैंग्स आॅफ वासेपुर और मुक्काबाज में भी काम किया है। विनीत कुमार की डायलाॅग डिलीवरी और एक्शन अच्छा है लेकिन एक्सप्रेशन के मामले में मार खा जाते हैं। उनके सामने शैतान है लेकिन उनके चेहरे पर डर नहीं दिखाई देता है। इसके अलावा अहाना कुमरा विनीत कुमार की साथी आहलुवालिया के रोल में हैं। अहाना को कम सीन मिले हैं लेकिन जब भी सीन में दिखाई देती हैं अच्छा दिखाई देती हैं। हालांकि उनके होने या न होने से कहानी और पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा त्यागी के रोल में सुचित्रा पिल्लई, काॅन्टैक्टर अजय मुदलावन के रोल में जीतेन्द्र जोशी और आदिवासी पुनिया का रोल में दिखीं मनर्जी। इन सबने ठीक-ठीक काम किया है।


चार एपिसोड में बनी बेताल को डायरेक्ट किया है पैटिक ग्राहम और निखिल महाजन ने। इसके प्रोड्यूसर हैं ब्लमहाउस और रेड चिली एंटरटेनमेंट। रेड चिली एंटरटेनमेंट शाहरूख खान की कंपनी है। नेटफ्लिक्स पर आई इस वेब सीरीज को अच्छे कंटेंट के लिए नहीं, बस देखने के लिए देख सकते हैं। सीजन का अंत कुछ ऐसा दिखाया गया है जिससे अगला सीजन को बनाया जा सके। हालांकि इसकी उम्मीद कम है और दर्शक भी एक और बुरी हाॅरर वेब सीरीज  नहीं देखना चाहेंगे।

Friday, May 29, 2020

सेवन ईयर्स इन तिब्बतः जब तिब्बत वहां के लोगों का हुआ करता था, तब की कहानी है ये।

सेवन ईयर्स इन तिब्बत कहानी तो है एक शख्स की। जो अपने जिंदगी के सात साल तिब्बत में बिताता है। उस दौरान तिब्बत में क्या-क्या होता है? वो शख्स तिब्बत को कैसे देखता है? उसने इन सात सालों में क्या किया? मगर ये सिर्फ इतनी-सी कहानी नहीं है। ये कहानी है तिब्बत की खूबसूरती की, वहां के शांतिप्रिय लोगों की जो हथियार नहीं उठाते और ये कहानी है तिब्बत को कुछ और बनाने की। यही सब इस मूवी में है। ये मूवी हेनरिच हैरेर की बुक सेवन ईयर्स इन तिब्बत पर बेस्ड है। इसके अलावा ये मूवी है दो लोगों के बीच बने एक विश्वास की। 1997 में रिलीज हुई ये मूवी अब आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं।


कहानी


सेवन ईयर्स ने तिब्बत में 1939 से 1952 के बीच की कहानी है। हेनरिच हैरेर जो आस्ट्रिया से हैं वो ब्रिटिश इंडिया के नंगा पर्वत की चढ़ाई करने जा रहा है जबकि उसकी पत्नी प्रेग्नेंट हैं। वो अपने कुछ साथियों के साथ उस पहाड़ को चढ़ने जाते हैं लेकिन आखिरी बेस कैंप से तूफान की वजह से लौटना पड़ता है। वहां से उनको विश्वयुद्ध की वजह से देहरादून के ब्रिटिश कैंप में रखा जाता है। यहीं हेनरिच को पता चलता है कि उसकी वाइफ को बेटा हुआ है और वो उसे तलाक देना चाहती है। उस कैंप से कई बार भागने की कोशिश करता है मगर हर बार पकड़ा जाता है। आखिरकार अपने कुछ साथियों के साथ कैंप से निकलने में कामयाब हो जाता है। बाकी सब पकड़ जाते हैं सिवाय हेनरिच और उसके साथी के। दोनों तिब्बत जाते हैं। तिब्बत में बाहर के लोगों को आना प्रतिबंध है इसलिए दोनों को वहां नहीं आने दिया जाता।


लोगों से छुपते हुए दोनों तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंच जाते हैं। जहां 13वें दलाई लामा रहते हैं, जिनकी पूरा तिब्बत पूजा करता है। वो तिब्बत के लीडर हैं और यहां उनका ही राज चलता है। दोनों को यहां रहने की परमिशन मिल जाती है। दलाई लामा से जब हेनरिच मिलते हैं तो देखते हैं कि वो तो एक बच्चा है। वो हेनरिच से बहुत कुछ सीखना चाहता है, बहुत कुछ पूछता है। दोनों रोज मिलते हैं, बात करते हैं। वो क्या-क्या बात करते हैं, दलाई लामा क्या सीखते हैं? वो सब आपको मूवी देखने पर पता चलेगा। 1949 में चीन तिब्बत पर अटैक कर देता है। पूरा तिब्बत चीनी सैनिकों से भर जाता है।



तिब्बत के लोगों को अपना पवित्र शहर ल्हासा छोड़ना पड़ता है। मगर दलाई लामा वहीं रहते हैं। हेनरिच का क्या होता है? वो तिब्बत में और रूकता है या अपने बेटे के लिए आस्ट्रिया लौट जाता है? ये जानने के लिए आपको ये मूवी देखनी होगी। मूवी में तिब्बत की स्टोरी 1952 तक ही दिखाई है। ये वही दलाई लामा हैं जो अब भारत के धर्मशाला में रहते हैं। 1959 में वे चीन से भारत आए थे, तब से वे यहीं रहते हैं। इस मूवी में हिमालय को दिखाया है। पहाड़ पर चढ़ना कितना कठिन होता है ये आपको इस मूवी में देखने को मिलेगा। मगर वो नजारे बेहद खूबसूरत लगते हैं चाहे वो बर्फ से ढंके पहाड़ हों या पहाड़ से घिरा तिब्बत।

ये सुंदर दृश्य भी इस मूवी के लिए आकर्षण पैदा करते हैं। इन सबके अलावा ये मूवी तिब्बत के बारे में बताती है। वहां के कल्चर, वेश-भूषा, तौर-तरीकों के बारे में पता चलता है। उस समय का तिब्बत कैसा था? सब कुछ मूवी देखने पर कुछ-कुछ समझ में आता है। इस मूवी में सबसे अच्छा सीन वो लगता है जब दलाई लामा, हेनरिच से बात करते हैं। हेनरिच उनको कुंदन कहता, दोनों एक-दूसरे पर यकीन करते थे। जब वो आखिरी बार मिलते हैं तो वो सीन इमोशनल कर देता है। हालांकि इतना भी इमोशनल नहीं कि आप रोने लगे, बस थोड़ा बुरा लगता है।

किरदार


हेनरिच का रोल निभाया ब्रैड पिट ने। ब्रैड पिट ने इसमें कमाल का काम किया है। वो सीन में होते हैं तो किसी और को देखने का मन नहीं करता। इसके अलावा दलाई लामा का रोल में रहे जेमयांग वांगचुक। वांगचुक ने भी अच्छा काम किया है। वो बच्चे और धर्मगुरू दोनों हैं। वो कभी गंभीर बातें करते तो कभी बिल्कुल बच्चों की तरह लगते। इसी वजह से वांगचुक दलाई लामा के रूप में अच्छे दिखते हैं। इसके अलावा भारतीय अभिनेता डेनी डेनजोंगपा भी मूवी में हैं। जो मूवी में बहुत कम ही दिखाई देते हैं।


ब्रैड पिट।

मूवी का कैमरा वर्क बहुत शानदार है। जिसकी वजह से ये मूवी बेहद अच्छी लगती है। सिनेमेटौग्राफी का काम किया है राॅबर्ट फ्रेज ने। 136 मिनट की इस मूवी का स्क्रीनप्ले का काम किया है बैकी जाॅनस्टन ने और डायरेक्ट किया है जीन जैक्यूस एनौड ने। ये मूवी बताती है कि हमारी जिंदगी एक यात्रा है जिसमें हम बहुत कुछ देखते हैं। इसमें एडवेंचर, पैसन, इमोशन होता है। आप ये मूवी देखेंगे तो समझ जाएंगे मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं?

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है। एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई ...