Tuesday, September 24, 2019

ग्रेटा थनबर्ग की इन बातों पर ध्यान दें!

यूएन का सम्मेलन चल रहा है। विश्व भर के बड़े-बड़े नेता यहां बैठे हैं। उन्हीं के बीच बैठी है एक 16 साल की लड़की। 16 साल की ये लड़की सबको सुनती है और फिर बोलती है। वो लगभग चीखते हुए बोलती है, ‘ये सब गलत है। मुझे यहां नहीं होना चाहिए। मुझे तो इस समुन्दर के पार अपने स्कूल में होना चाहिए। आप सभी मेरे पास एक उम्मीद लेकर आए हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई? आपने अपने खोखले शब्दों के लिए मुझसे मेरे सपने और बचपन को छीन लिया है। लोग परेशान हो रहे हैं, मर रहे हैं। पूरा इको-सिस्टम खराब हो रहा है और आप विकास के नाम की जादुई कहानी सुनाने में लगे हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई? ये बातें बोल रही थी एक लड़की जिसके साथ आज लाखों लोग खड़े हैं। जिसने पूरी दुनिया को बताया कि अब समय आ गया है। जब हम खड़े हों और विरोध करें। इस 16 साल की लड़की का नाम है ग्रेटा थनबर्ग।


ग्रेटा उन सभी लोगों से ज्यादा समझदार है जो ऑफिस में बैठकर प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग पर अफसोस जताते हैं। ग्रेटा थनबर्ग को आज हर कोई जानता है, जिसे बोलने के लिए यूएन बुला रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ग्रेटा घर से निकली और हर कोई सुनने लगा। आज जब ग्रेटा कुछ बोलने के लिए खड़ी होती है तो लाखों लोग सुनते हैं। लेकिन एक साल पहले ग्रेटा अकेली थी। वो स्वीडन की गलियों में, संसद के बाहर अकेले एक बोर्ड के साथ खड़ी रही। वो हर शुक्रवार को यहां आतीं और यही काम करतीं। तब ग्रेटा का साथ न ही उनके माता-पिता दे रहे थे और न ही उनके दोस्त। उसी 15 साल की लड़की की वजह से ब्रिटेन में लाखों लोग सड़क पर उतर आए। जिस वजह से ब्रिटेन की संसद को क्लाइमेट इमरजेंसी लगानी पड़ी। ब्रिटेन ऐसा करने वाला पहला देश बन गया। तब पहली बार दुनिया ने ग्रेटा के बारे में सुना। ग्रेटा कार्बन के उत्सर्जन को कम करने की बात कहती हैं। वो सिर्फ कहती ही नहीं है, करती भी हैं। ग्रेटा हवाई जहाज से सफर नहीं करती हैं। वो सड़क और पानी के रास्ते हर जगह जाती हैं। वो अपनी उम्र के लोगों से अपील करती हैं कि अब हमें ही इस समस्या से लड़ना होगा।

वो इस सम्मेलन में करीब-करीब रोते हुए बोलती हैं, 'आप कहते हैं कि आप सुन रहे हैं। लेकिन आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितने दुखी हैं और गुस्से में हैं। क्योंकि अगर आप इस स्थिति को समझ रहे होते तो उस पर काम कर रहे होते।' पेरिस जलवायु सम्मेलन में कहा गया था कि कार्बन उत्सर्जन को आधा कम कर देंगे। ऐसा करने पर हमारी दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री हो जाएगा, जो 1991 में था। लेकिन हम इसे कम कर ही नहीं पा रहे हैं। सब भाषण दे रहे हैं लेकिन उसको कम कैसे किया जाए इस पर कोई प्लान नहीं बन रहे है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि अगर अब तापमान कम नहीं किया गया तो 2100 में दुनिया भर के बड़े शहर जल मग्न हो जाएंगे। जिसमें सिडनी, मैक्सिको और लॉस एंजिल्स जैसे शहर शामिल हैं। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के आधे से ज्यादा भाग डूब चुका है। इसी वजह से इंडोनेशिया ने अपनी राजधानी बदलने की घोषणा कर दी है। 

ग्रेटा थनबर्ग

ग्रेटा भावुक होते हुए कहती हैं, आप माने या न माने युवाओं में बदलाव आ रहा है, लोग जाग रहे हैं। वो सभी समझते हैं कि आप लोग कुछ नहीं कर रहे हैं। अगर अब आपने कुछ नहीं किया तो हम लोग आपको कभी माफ नहीं करेंगे। ग्रेटा ने एक साल पहले जो काम खुद किया था उसको करने का हर किसी से कहती हैं। लोगों को अब तख्तियां लेकर सड़कों पर निकल जाना चाहिए। ग्रेटा ने इसके लिए एक मुहिम भी चलाई है, 'फ्राईडे फॉर क्लाइमेट चेंज'। आपको रोज-रोज सड़कों पर उतरने की जरूरत नहीं है, बस हफ्ते के शुक्रवार को सरकार को याद दिलाना है। जब 21 सितंबर 2019 को ये मुहिम शुरू हुई तो ये एक आंदोलन बन गया। हर बड़े शहर में हजारों लोग जुटे। सिडनी और मेलबर्न में तो 80 हजार लोग एक जगह जुटे। दिल्ली, जिसे चलता हुआ शहर कहते हैं। जहां किसी को किसी से लेना-देना नहीं होता है। लेकिन उस दिन हजारों लोग जुटे और सड़क पर निकल पड़े। मैं खुद उस मार्च में शामिल था, उस दिन मुझे लगा कि भीड़ अच्छा काम भी कर सकते हैं। चारों ओर नारे गूंज रहे थे, हमें चाहिए आजादी, सूखे से आजादी, प्रदूषण से आजादी, क्लाइमेट चेंज से आजादी। इस मार्च का सबसे खूबसूरत दृश्य था, दो छोटे-छोटे बच्चे। जो शायद क्लाइमेट चेंज के बारे में सही से समझते भी न हो लेकिन वो इस मुहिम में साथ खड़े थे।

कुछ लोग समझते होंगे कि इससे क्या ही होगा? हो सकता है कि इससे कुछ न हो, हो सकता है यहां आने वाले बहुत से लोग खुद प्रदूषण करते होंगे। लेकिन ये भी सच है कि जब तक लोग जुटते नहीं, सरकार कुछ करती नहीं। जब यहां लोग आएंगे तो कुछ तो पर्यावरण के प्रति, इस समय की स्थिति के बारे में जरूर समझेंगे। तब वो शायद अगली बार ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो पर्यावरण के लिए अच्छा न हो। ग्रेटा की इसी मुहिम की वजह से पूरी दुनिया में पर्यावरण की बहस चल पड़ी है। सब विकास के नाम पर हो रहा है लेकिन ये क्यों नहीं समझते कि ये पर्यावरण भी विकास है। इसे बचाना जरूरी है, बेहद जरूरी।

Thursday, September 5, 2019

जलवायु संकट पर बात क्यों?

पहले गर्मी आई तो हम पूरी दुनिया की आबोहवा की बात करने लगे। हमने देखा कि कैसे उत्तराखंड के जंगल धधक रहे थे। अखबारों में आए दिन कहा जाता रहा कि ये साल का सबसे गर्म दिन रहा। ये भी कहा गया कि इस साल की गर्मी ने 128 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। गर्मी आती है तो हमें एक और समस्या से जूझना पड़ता है पानी की समस्या से। हर बार हम बुंदेलखंड और महाराष्ट्र में सूखे की समस्या को सुनते थे। लेकिन इस बार पानी की समस्या से पूरा देश जूझा। आखिर ये सब क्यों हो रहा है? क्यों चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर जा रही हैं? क्यों जलवायु संकट का विषय हमारे अस्तित्व का विषय बन गया है?


जब आइसलैंड का पहला ग्लेशियर ओकोजुकुल खत्म हो जाए तो जलवायु परिवर्तन पर बात होनी चाहिए। जब विश्व को 20 फीसदी ऑक्सीजन देने वाला अमेजन के जंगल में आग धधकने लगे तो जलवायु संकट एक महत्वपूर्ण विषय बन जाता है। जब 14 साल की लड़की स्कूल न जाकर क्लाइमेट चेंज पर संसद के सामने धरने पर बैठ जाती है तो ये विषय जरूरी लगता है। जरा सोचिए ऐसा क्यों हो रहा है? इसकी वजह हैं, हम और हमारा विकास।
इस कथाकथित विकास की वजह से ही ये सब हो रहा है। मैं कुछ दिनों पहले ही उत्तराखंड गया था। उत्तराखंड प्राकृतिक संपदा से भरा हुआ राज्य है। इस राज्य की सबसे बड़ी समस्या है रोजगार। इसी वजह से यहां के लोग उत्तराखंड के लोग पलायन कर रहे हैं और शहरों की ओर लौट रहे हैं। सरकार इसके समाधान के लिए विकास ला रही है और अब उत्तराखंड में सड़क चौड़ीकरण का काम जोरों पर है। हरिद्वार से लेकर देवप्रयाग तक सड़क अच्छी की जा रही है और पहाड़ को तोड़ा जा रहा है। जिससे जो पहाड़ पहले खूबसूरत दिखते थे, वो अब बंजर लगते हैं। अगर यही हाल रहा तो पूरा उत्तराखंड बंजर लगने लगेगा। ये तो बस विकास एक पैमाना है। इसके अलावा उद्योग भी एक बड़ा फैक्टर है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।

पूंजीवाद विकास


भारत कृषि प्रधान देश है, आज भी देश की 60 फीसदी आबादी खेती ही करती है। शहर उद्योगों की तरफ भाग रहे हैं और गाँवों में खेती की जाती है। उद्योगों को चलाने के लिए पहले तो भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है फिर उसका जो वेस्ट मटेरियल होता है वो नदियों में जाकर गिरता है। अभी बरसात है तो दिल्ली में अभी यमुना साफ दिखेगी। कुछ दिन बाद देखना यही पवित्र और स्वच्छ यमुना काली नदी के के रूप में दिखेगी। मुझे अच्छी तरह से याद है इसी साल मई में जब पूरा देश पानी की समस्या से जूझ रहा था, उसमें गुजरात भी शामिल था।
गुजरात में पानी की कमी का हाल कुछ ऐसा था कि गावों में हर रोज पानी का टैंकर सरकार भेज रही थी। कहीं-कहीं तो पानी का टैंकर हफ्ते में एक बार जा रहा था। पानी की संकट की ही वजह से गुजरात मॉडल फेल होता दिखाई दे रहा था। गुजरात में पानी की समस्या इतनी बढ़ गई थी मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने आकर इस पर दखल दिया था। मुख्यमंत्री ने बताया था कि राज्य सरदार सरोवर डैम को छोड़ दिया जाए तो किसी भी बांध में पानी नहीं बचा है। तब उद्योगों को आदेश दिया गया था कि उनको उपयोग किया हुआ पानी दिया जाएगा। शायद यही विकास है जो एक न एक दिन ढ़र्रे पर आ ही जाता है।

जल संकट


हम समझते हैं कि जल संकट का मतलब है पानी की कमी।जल संकट सिर्फ पानी की कमी ही नहीं है, पानी की हद से ज्यादा अधिकता भी जलसंकट है। जलवायु संकट की ही वजह से ये देश सूखा और बाढ़ की ओर एक साथ बढ़ रहा है। जब बारिश नहीं हो रही थी तब देश के आधे राज्य सूखे की समस्या झेल रहे थे। चेन्नई, गुजरात, महाराष्ट्र और हैदराबाद इन सबमें शामिल थे। आपने चेन्नई की वो तस्वीर देखी ही होगी। जिसमें एक तस्वीर पिछले साल की थी, जिसमें पानी ही पानी दिख रहा थी। दूसरी तस्वीर में चेन्नई का पानी गायब हो चुका था। पानी के चारों तरफ बसा ये शहर अब पानी से जूझ रहा है।
जब बारिश हुई तो पूरा देश दो समस्याओं से घिर गया। एक बाढ़ से और दूसरी सूखे से। बिहार के कुछ जगह बाढ़ से परेशान थीं तो दूसरी तरफ उसी बिहार में सूखा भी पड़ रहा था। नर्मदा का स्तर तो इतना बढ़ चुका है कि कई गाँव के लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की सूत्रधार मेधा पाटेकर यहां के लोगों के लिए अनशन पर बैठ गईं। ऐसे ही कई राज्य बाढ़ से जूझ रहे हैं। वहीं बारिश के बाद भी पानी की कमी बनी हुई है। सबने बाढ़ पर ध्यान दिया लेकिन उस पानी को संरक्षित करने पर किसी का ध्यान नहीं गया।
प्रधानमंत्री ने भी बस मन की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। सरकार नल से जल की नीति तो ला रही है। लेकिन जब जमीन के नीचे पानी ही नहीं होगा तो सब घर पानी कैसे पहुच पाएगा। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2021 तक देश के 20 बड़े शहरों का ग्राउंड वॉटर खत्म हो जायेगा। हमने पानी संरक्षण किया नहीं इसलिए उसका नतीजा कुछ दिनों बाद मिल ही जाएगा। जब हम पानी की समस्या से फिर से जूझ रहे होंगे। इन सब पर गौर कीजिए और थोड़ा समझिए कि जलवायु परिवर्तन पर बात करना क्यों जरूरी है?

शकुंतला देवी किसी गणितज्ञ से ज्यादा मां-बेटी के रिश्ते की कहानी लगती है

तुम्हें क्यों लगता है औरत को किसी आदमी की जरूरत है। एक लड़की जो खेलते-खेलते गणित के मुश्किल सवाल को झटपट हल कर देती है। जो कभी स्कूल नहीं गई ...