Friday, March 8, 2019

जवाहर लाल नेहरू का वो फैसला जिसने इंदिरा-फिरोज को अलग कर दिया था।

एक देह सामने पड़ी हुई है। उसके बगल में ही सफेद साड़ी में एक औरत बैठी हुई है। जो बिलख-बिलखकर रो रही है। वहीं हजारों लोग भी खड़े थे जो उस व्यक्ति के अंतिम दर्शन करना चाहते थे। उस भीड़ को देखकर सबसे बड़ा व्यक्ति बोला- मुझे नहीं पता था कि ये लोगों में इतना लोकप्रिय था। ये कहना वाला शख्स देश का प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू है और जो लाश पड़ी है वो उनके दामाद फिरोज गांधी की है। वहीं सफेद साड़ी में बिलखने वाली औरत इंदिरा गांधी हैं। आज बात इंदिरा-फिरोज के विरोधी रूप की जिसकी वजह जवाहर लाल नेहरू का एक पत्र बना।

फिरोज और इंदिरा गांधी का विवाह 26 मार्च 1942 को हुआ। उनकी शादी के 6 महीने बाद ही दोनों भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी गये। जेल से रिहा होने के बाद दोनों आनंद भवन में रहने लगे। जल्दी ही दोनों ने एक बेटे को जन्म दिया। 20 अगस्त 1944 को मुंबई में उनकी पहली संतान राजीव रत्न बिरजीस नेहरू गांधी का जन्म हुआ। राजीव का ये नाम इसलिये रखा गया ताकि याद रखा जाये कि वो जितना फिरोज का बेटा है। उतना ही वो नेहरू का पोता है। तब जवाहर लाल नेहरू जेल में थे। उन्होंने जेल से इंदिरा गांधी को लिखा-

‘‘नेहरू को अतिरिक्त नाम की तरह जोड़ दिया जाए तो कैसा रहेगा। नेहरू गांधी नहीं वो मूर्खतापूर्ण लगता है। बल्कि नेहरू अतिरिक्त नाम के रूप में।’’

इंदिरा अक्सर कश्मीर जाया करती थीं। वे जब भी परेशान होती कश्मीर आ जाया करती। वो कश्मीर में अपने बेटे राजीव और पति फिरोज के साथ थी। तब सूचना मिली की जवाहर लाल नेहरू को जेल से रिहा कर दिया गया है। जवाहर लाल नेहरू को 15 जून 1945 को रिहा किया गया। तब इंदिरा अपने पति और बेटे को छोड़कर अपने पिता के पास जाना चाहती थीं। इंदिरा को लगा कि इस समय उनको अपने पिता के साथ होना चाहिये। जब फिरोज ने कहा कि तुम्हारे जाने से क्या होगा? तो वो बोली मुझे नहीं पता, मुझे बस जाना है। यही इशारा बाद में इंदिरा को जवाहर लाल नेहरू के पास और फिरोज गांधी से दूर करने वाला था।
Related image1945 में आम चुनाव हुये। 102 सीटों के इस चुनाव में कांग्रेस 59 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इंदिरा ने तब अपने ‘पापू’ को लिखा-

‘‘मैं दिल्ली में आपकी और आपसे ज्यादा उस महान संगठन की, जिसके आप प्रतिनिधि हैं। इस जीत को अपनी आंखों से देखने के लिये बेहद तरस रही हूं।’’

1946 में फिरोज गांधी नेहरू परिवार का अखबार नेशनल हेराल्ड का संपादन संभालने लगे। दोनों पति-पत्नी हजरतगंज में आकर रहने लगे। फिरोज को बागवानी करने में मजा आता था और इंदिरा को गृहस्थ के काम करने में। लेकिन वो गृहस्थी शौकिया तौर पर करती थी। उसे हमेशा करने के लिये इंदिरा बनी भी नहीं थीं। इंदिरा ने इस शहर के बारे में अपने पिता को लिखा-
‘‘हमारे सूबाई शहर में एक अजब सी मुर्दनी छाई हुई है- भ्रष्टाचार और ढिलाई , माहौल को दुःखद बना रहे हैं। कुछ लोगों की आत्मसंतुष्टि, कुछ का कपट, जीवन में जरा-सी भी रवानगी नहीं है। यह अविश्वसनीय नहीं है कि फासीवाद के आडंबरपूर्ण जाल ने दसियों लाखों लोगों को आकर्षित कर लिया है। आरएसएस जमीन की तर्ज पर तेजी से मजबूत होता जा रहा है। अधिकतर कांग्रेसियों व सरकारी नौकरों का भी इन प्रवृत्तियों को समर्थन हासिल है।’’
इन दिनों फिरोज गांधी के अफेयर की खबरें आने लगीं। फिरोज के अखबार की तरफ ध्यान न देने के कारण अखबार चलाने में वित्तीय संकट आ गया। फिरोज के द्वारा पैसे के दुरूपयोग से इंदिरा नाराज थीं। इसी दौरान वे राजनेता अली जहीर के बेटी के साथ इश्क में पड़ गये। इस प्रेम संबंध ने इतना तूल पकड़ा कि नेहरू को खुद इसमें बीच में पड़कर रोकना पड़ा। इसी दौरान 14 दिसंबर 1946 को इंदिरा गांधी ने दूसरे बेटे को जन्म दिया, नाम रखा संजय। जो महाभारत से अंधे धृतराष्ट के सहायक के रूप में थे। आगे चलकर इसी संजय के लिये इंदिरा धृतराष्ट बनने वाली थीं।
Image result for jawahar lal nehru and indira gandhiजब आजादी की रात जवाहर लाल नेहरू देश के नाम संदेश दे रहे थे तब इंदिरा और फिरोज वहीं थे। लेकिन दोनों के होने में अंतर था। इंदिरा हर वक्त नेहरू के साथ थीं जबकि फिरोज गांधी को बाकी पत्रकारों के साथ बैठाया गया था। यहां से साफ हो रहा था कि नेहरू ने दो दिशा खींच दी थी जो आगे चलकर और तेज होने वाली थी। 30 जनवरी 1948 को देश ने अपने बापू की हत्या देखी। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू की सुरक्षा बढ़ा दी गई। तब नेहरू ने घर संभालने के लिये इंदिरा को बुलाया। इंदिरा गांधी तीन मूर्ति भवन में आ गईं जहां देश के प्रधानमंत्री रहते थे। इंदिरा के साथ उनके दोनों बेटे भी आ गये। अपने इस फैसले पर बाद में इंदिरा लिखती हैं-
‘‘अगर मैं नहीं आती तो मेरे पिता को बुरा लगता, मना करना बहुत कठिन था। यह बड़ी समस्या थी क्योंकि फिरोज के लिए स्वाभाविक था कि उन्हें मेरा जाना कतई पसंद नहीं आए।’’
वो फैसला इंदिरा गांधी और फिरोज के जीवन की दिशा बदल देना वाला था। वो फिरोज गांधी को एक सशक्त नेता और बेहतरीन राजनेता बना देने वाला था। जो संसद में खड़े होकर नेहरू को चुनौती देने वाला था। वो नेहरू के मुख्यमंत्री को गद्दी से उतार फेंकने वाला था। तीन मूर्ति भवन के इस फैसले से इंदिरा अपने पति से दूर जाने वाली थीं और अपने पति को अपना विरोधी समझने वाली थीं।
ये वाकया सागारिका घोष की किताब इंदिरा से लिया गया है।

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